इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर के घर सीबीआई छापों की चौतरफा निंदा
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और राज्य सभा में विपक्षी सांसदों के एक समूह समेत कई मानवाधिकार और गैर-सरकारी संगठनों ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और उनके पति आनंद ग्रोवर के घर तथा गैर-सरकारी संगठन ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ के कार्यालयों पर केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के छापों की कड़ी निंदा की है.
अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया, “मैं प्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ताओं इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर पर सीबीआई की छापेमारी की कड़ी निंदा करता हूं. कानून अपना काम करता है, लेकिन कानून और संवैधानिक मूल्यों को कायम रखने में अपना जीवन लगाने वाले दिग्गजों को निशाना बनाना स्पष्ट रूप से बदले की कार्रवाई है.”
वहीं राज्य सभा में भी विपक्षी सांसदों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर दोनों वरिष्ठ अधिवक्ताओं के खिलाफ हुई इस कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं. सांसदों ने अपने पत्र में सरकार की इस कार्रवाई को सत्ता का घोर दुरुपयोग कहा है.
वहीं मानवाधिकार संगठन जनहस्तक्षेप ने इसे कानून के राज, सांवैधानिक मूल्यों और आम जनता के हकों के लिए लड़ने वालों के दमन के पिछले पांच बरसों से जारी अभियान की ताजा कड़ी बताया है.
संगठन की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है, “झुग्गीवासियों, मजदूरों, दलितों और आदिवासियों, महिलाओं तथा अन्य दबे-कुचले समुदायों के हकों के लिए लगातार काम करने वाली अधिवक्ता और जनअधिकार कार्यकर्ता जयसिंह एक अरसे से मोदी सरकार के निशाने पर हैं. उन्होंने जज लोया की मौत के मामले की फिर से जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के पक्ष में जिरह की थी. इस मामले में बीजेपी के अध्यक्ष और मौजूदा केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत सत्ता से जुड़े कई लोग शक के घेरे में हैं.”
जनहस्तक्षेप की ओर से कहा गया है कि संगठन जयसिंह के खिलाफ विदेशी योगदान विनियमन कानून (एफसीआरए) के तहत की गई सीबीआई की ताजा कार्रवाई को मानवाधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के पक्ष में उठने वाली हर आवाज को खामोश करने की मोदी सरकार की अलोकतांत्रिक और फासीवादी नीति की एक कड़ी के रूप में देखता है.
इसके अलावा ‘लायर्स कलेक्टिव’ ने भी इंदिरा जयसिंह और आनंद के घरों पर सीबीआई के छापों की निंदा करते हुए कहा है कि दोनों लम्बे समय तक मानवाधिकार मामलों के अग्रणी नाम रहे हैं, इसीलिए सरकार उन्हें निशाना बना रही है. लायर्स कलेक्टिव ने अपने बयान में कहा है, “साल 2016 में संगटन का एफसीआरए लाइसेंस रद्द किया गया था जिसे उसने बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. इस पूरे मामले के कोर्ट में लंबित होने के बावजूद भी सीबीआई ने इस साल 13 जून को आईपीसी के विभिन्न धाराओं के तहत संगठन के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का मुकदमा दर्ज किया. ‘लायर्स कलेक्टिव’ के खिलाफ कदम उठाने के लिए सरकार और उसकी एजेंसियां अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं.”
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकारी एजेंसियों के छापे अब विपक्षियों का डराने-धमकाने का तरीका बन गई है.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने सरकार पर पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह को निशाना बनाने का आरोप लगाते हुये कहा कि सीबीआई की छापेमारी के दायरे में वरिष्ठ वकीलों का आना सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करता है।
येचुरी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘इस मामले में कानून अपने तरीके से काम करेगा, लेकिन ख्याति प्राप्त-सम्मानित वकीलों को सरकार द्वारा अपनी जांच एजेंसियों के माध्यम से निशाना बनाये जाने से उसकी मंशा पर गंभीर सवाल उठते है.’’
वरिष्ठ वकील जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ एक महिला के यौन उत्पीड़न के आरोप की जांच की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए थे.
इससे पहले सामाजिक कार्यकर्ताओं जीएन साईबाबा, रोना विलसन, सुधीर धवले, सुरेन्द्र गाडलिंग, महेश राउत, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंजालवेस, आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा पर सरकार ने विभिन्न मामलों में आपराधिक कानूनों के तहत कार्रवाई की है.
इसके साथ ही देश की विभिन्न जेलों में कैद तमाम क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं की तुरंत रिहाई और उनके खिलाफ सभी फर्जी मामले वापस लिये जाने की भी मांग भी शामिल है.