बीते चार साल रहे सबसे गर्म: संयुक्त राष्ट्र


Last four years hottest on record U.N. confirms

 

जलवायु परिवर्तन के चलते धरती का तापमान बढ़ने की बात लगातार विश्लेषणों में पुष्ट हो रही है. संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने विश्लेषण जारी कर यह कहा है कि जब से तापमान का वैश्विक रिकॉर्ड रखा जाना शुरू हुआ है, तब से बीते चार साल सबसे गर्म साल रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने नवंबर 2018 को कहा था कि साल 2018 चौथा सबसे गर्म साल दर्ज किया गया है. इसलिए जलवायु परिवर्तन के लिए सकारात्मक कदम उठाने की सख्त जरुरत है.

6 फरवरी को विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने अपने जलवायु मॉडल में 2018 के अंतिम सप्ताह को शामिल किया और निष्कर्ष निकाला कि 2018 में धरती की सतह का औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1°C (1.8°F) ज्यादा था.

निष्कर्ष में सामने आया है कि अलनीनो प्रभाव की वजह से साल 2016 चार सालों में सबसे गर्म साल रहा है.

संगठन ने कहा कि इतिहास के 20 सबसे गर्म साल बीते 22 सालों में रिकॉर्ड किए गए हैं.

संगठन के महासचिव पेट्री टालस (Petteri Taalas) ने कहा कि तापमान की दीर्घकालिक प्रवृत्ति अलग-अलग वर्षों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. यह प्रवृत्ति बता रही है कि औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है. पिछले चार वर्षों के दौरान भूमि और महासागर के तापमान बढ़ने की दर असाधारण रही है.

संगठन ने कहा है कि बढ़ते हुए तापमान की वजह से कई अन्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. इसमें चक्रवात, सूखा पड़ना और बाढ़ आना शामिल है. महासचिव ने कहा कि जैसा बदलाव हम जलवायु परिवर्तन से देखते हैं, वह सब हो रहा है. इन सबका सामना हमें करना है.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने बताया कि 2018 में जो तापमान था, 2019 की शुरुआत भी वहीं से हुई है. इसका असर ऑस्ट्रेलिया में देखने को मिला है. जहां जनवरी में सबसे ज्यादा गर्मी दर्ज की गई. ये चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है.

अमेरिका के मध्य-पश्चिमी हिस्से पिछले सप्ताह एक “ध्रुवीय भंवर” की चपेट में आ गए थे. जिससे तापमान लगभग (-53 ° C) कम हो गया था

पेट्री टालस (Petteri Taalas) ने कहा कि घातक ठंड की वजह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हैं. इससे के चलते ध्रुव भी लगातार गर्म होते गए हैं.

उन्होंने कहा कि कम अक्षांशों पर ठंडक आर्कटिक में हुए परिवर्तनों की वजह से है. “ध्रुवों पर जो होता है, उसका प्रभाव केवल ध्रुवों पर नहीं रहता है. बल्कि, यह निचले अक्षांशों में मौसम और जलवायु स्थितियों को प्रभावित करता है, जहां सैकड़ों लोग रहते हैं.”


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