पिछले तीन साल में हिरासत में पांच हजार से ज्यादा की मौत
पिछले तीन साल में न्यायिक हिरासत में 5000 से ज्यादा और पुलिस हिरासत में 400 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई है. ये जानकारी लोक सभा में दी गई.
प्रश्न काल में छह सांसदों की ओर से किए गए सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से प्राप्त जानकारी का हवाला देते हुए बताया कि विगत में न्यायिक हिरासत में 5047 लोगों की मृत्यु हुई है जबकि पुलिस हिरासत में मरने वालों की संख्या 427 थी.
सरकार की ओर से रखे गए आंकड़ों के अनुसार 2016-17 में 1616, 2017-18 में 1636 और 2018-19 में 1797 लोगों की न्यायिक हिरासत में मृत्यु हुई. इसी अवधि में पुलिस हिरासत में क्रमशः 145, 146 और 136 लोगों की मृत्यु हुई.
सरकार ने सदन को बताया कि तीन वर्षों के दौरान राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 20 दोषी लोक सेवकों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है.
सरकार से विधि आयोग की 273वीं रिपोर्ट की सिफारिशें लागू करने के बारे में भी सवाल पूछा गया था, जिसके अनुसार भारत को यातना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन को अंगीकार करना चाहिए और यातना रोकने के लिए एक कानून बनाना चाहिए.
इसके जवाब में सरकार ने बताया कि 273वीं रिपोर्ट के साथ मसौदा विधेयक राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्रों को उनके विचार जानने के लिए भेजा गया और राज्य सरकारों से प्राप्त टिप्पणियों के साथ स्टेटस रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय को सौंप दी है.
हिरासत में होने वाली मौतों की घटनाएं रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए सरकार ने बताया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने विचाराधीन व्यक्तियों और कैदियों की स्थिति की निगरानी के लिए समय समय पर विभिन्न कारागारों का दौरा किया गया और कार्यशालाओं व सेमिनारों के जरिए अधिकारीयों और कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने के प्रयत्न किए गए हैं.