कर्ज माफी से घबराई मोदी सरकार
प्रधानमंत्री मोदी ने बहुप्रचारित पीएम किसान योजना को लांच कर दिया है. इस पर अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज का कहना है कि दरअसल, मोदी सरकार तीन राज्यों की हालिया हार तथा किसानों की कर्ज माफी की योजना से घबराई हुई है.
मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव के पहले किसानों की ताकत का आभास हुआ है. इस कारण से इस हवा-हवाई योजना को लागू किया जा रहा है. बादल सरोज का कहना है कि किसानों को तो कर्जमाफी के अलावा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार अपनी फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य चाहिए जिससे कन्नीकाटने के लिये इस तरह के चुनावी चोंचलों का सहारा लिया जा रहा है.
खेत-मजदूर योजना से बाहर
अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज ने मोदी सरकार की किसान सम्मान निधि योजना को जिस तरह से लागू किया जा रहा है उस पर भी सवाल उठाए हैं. उन्होंने बताया कि इस पीएम किसान योजना का नोटिफिकेशन 12 फरवरी को जारी किया गया है तथा 20 फऱवरी तक आवेदन मंगाये गये हैं. इन 8 दिनों में तीसरे शनिवार को मिलाकर 3 दिन की छुट्टी थी. अब बाकी के बचे 5 दिनों में क्या 12 करोड़ किसानों का आवेदन आना संभव था. यह तो चुनाव में प्रचार के लिए किया गया है.
अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव ने बताया किया कि इस योजना के तहत 12 करोड़ किसानों को साल में 6 हजार रुपये देने की बात की जा रही है जबकि इससे दुगुनी संख्या में खेत-मजदूर हैं जिन्हें जमीन पर मालिकाना हक न होने के कारण इस योजना का लाभ नहीं मिल सकेगा.
मोदी सरकार की कृषि नीति पर सवाल उठाते हुये बादल सरोज ने कहा कि केन्द्र सरकार विदेशों से 55 रुपये किलो की दर से दाल का आयात कर रही है वहीं मध्यप्रदेश के गाडरवारा के किसानों तो दाल का मूल्य मात्र 25 रुपये ही मिल पा रहा है. उन्होंने कहा कि इस तरह से विश्व-व्यापार समझौते के लागू होने के बाद से कृषि को सुरक्षा नहीं दी जा रही है. अब तो किसानों का संकट एक सामाजिक संकट बन गया है, इस सामाजिक संकट से बाहर निकलने के लिये 12 करोड़ किसानों को साल में 6 हजार रुपये देना नाकाफी ही नहीं बेतुका भी है.
दरअसल, किसानों के लिये किसानी लाभकारी बनाया जाना चाहिये जिससे इस सामाजिक संकट से बाहर निकला जा सके.
पीएम किसान योजना एक चुनावी जुमला
इसी तरह से छत्तीसगढ़ किसानसभा के अध्यक्ष संजय पराते ने इसे चुनावी जुमला करार दिया है. संजय पराते का कहना है कि 12 करोड़ किसानों को इस योजना का लाभ देने का दावा किया जा रहा है. उन्होंने सवाल किया कि इन 12 करोड़ किसानों को किस तरह से चिन्हित किया जा सकता है? किसानों से आवेदन मंगाने के बजाये लैंड रिकार्ड के आधार पर इसका लाभ देना चाहिये. हालांकि, उन्होंने यह भी दुहराया कि मोदी सरकार की मंशा किसानों की किसानी में मदद करना नहीं वोट का जुगाड़ करने की कोशिश ही है.
संजय पराते ने साल में 6 हजार की किसान सम्मान निधि कितनी कारगार होगी इसे गणित के माध्यम से समझाने की कोशिश करते हुये बताया कि छत्तीसगढ़ में धान की एक फसल लेने के लिये प्रति एकड़ 20 हजार रुपये का खर्च बैठता है. अब इसमें 2 या 4 हजार रुपये की मदद कितनी कारगार साबित होगी. दूसरी तरफ इस पीएम किसान योजना की शर्ते हीं ऐसी हैं कि इससे कई करोड़ किसान बाहर हो जायेंगे.
संजय पराते ने कहा कि मोदी सरकार की इस योजना में शर्त है कि उस परिवार का कोई सदस्य सरकारी नौकरी में नहीं होना चाहिये याने की यदि किसी छोटे किसान का बेटा स्कूल में नौकरी करता है तो भी इस योजना का लाभ नहीं मिल सकता है. दूसरे उस परिवार के किसी सदस्य को 10 हजार से ज्यादा की पेंशन मिल रही हो ऐसा नहीं होना चाहिये. यदि सरकार किसान को किसानी में मदद करना चाहती है तो ज्यादा-से-ज्यादा किसानों को इसमें शामिल करना चाहिये जबकि शर्ते ऐसी हैं कि ज्यादा-से-ज्यादा इससे वंचित रह जायेंगे.
किसान जागरूक हैं
छत्तीसगढ़ किसान बिरादरी के नंदकुमार कश्यप का कहना है कि किसानों को नगद रकम की जरूरत नहीं थी, उन्हें जरूरत है कि उनके फसल पर उन्हें स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशों के मुताबिक डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले. आज की तारीख में किसानों को केवल स्वामीनाथऩ आयोग की सिफारिशों को लागू करके ही लाभ पहुंचाया जा सकता है. मोदी सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की जगह खैरात बांटकर वोट लेना चाहती है जिसे किसान भी समझ रहें हैं.
नंदकुमार कश्यप का कहना है कि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश तथा राजस्थान के विधानसभा चुनावों में हार के बाद मोदी सरकार का यह एक चुनावी पैंतरा है. किसानों को वाकई में मदद करने की जगह लुभाने की कोशिश की जा रही है.
गौरतलब है कि 24 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तरप्रदेश के गोरखपुर से किसान सम्मान निधि योजना को शुरू किया. इसके तहत करीब 12 करोड़ किसानों को साल में तीन किस्तों में कुल 6 हजार रुपये देने की बात है. इसे दिसंबर 2018 से लागू माना जा रहा है तथा 2019-20 के अंतरिम बजट में इसके लिये 75 हजार करोड़ रुपयों का प्रावधान रखा गया है.
बता दें कि जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में 119 मिलियन कृषक तथा 144 मिलियन खेत-मजदूर हैं. कुलमिलाकर, 263 मिलियन लोग खेतों में काम करते हैं. यह देश के कुल कामगारों का 54 फीसदी है.