प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में नहीं है पूर्ण स्वास्थ्य समाधान


PMJAY will not cover contaract, dialysis and delivery patient

 

मोदी सरकार की महत्वकांक्षी योजना आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को शुरू हुए पांच महीने हो गए हैं. सरकार ने इस योजना के प्रचार-प्रसार में कहा था कि इसके दायरे में 10 करोड़ लोगों को सालाना पांच लाख का मेडिकल इंश्योरेंस और 50 करोड़ लोगों को इसका लाभ मिलेगा. लेकिन देश के कई हिस्सों से आ रही मीडिया रिपोर्ट स्वास्थ्य को लेकर सरकार के इन दावों को झुठलाती हैं.

इस योजना में पहले ही ओपीडी मरीजों को कवर नहीं किया गया है. अब नेशनल हेल्थ ऑथरिटी(एनएचए) ने इससे मोतियाबिंद, डाएलिसिस और डिलीवरी के मरीजों को बाहर कर दिया है. अब ये मरीज प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का लाभ नहीं उठा सकते.

अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक एनएचए की सीईओ का मानना है, “5 महीने में इस योजना को लेकर हमने समझा है कि इसके अंतर्गत उन बीमारियों को कवर नहीं किया जाए जिसके लिए पहले से ही स्कीम है. ताकि यह सही तरीके से चल सके.

हालांकि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के आंकड़े से यह बात सामने आती है कि सबसे ज्यादा मोतियाबिंद के मरीजों ने इस योजना के तहत क्लेम किया था. शुरू के तीन महीने में 24 नवबंर 2018 तक इनकी संख्या 6900 थी.

वहीं 2017-18 में अकेले नेशनल ब्लाइंडनेस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत करीब 16 लाख मोतियाबिंद मरीजों का मुफ्त इलाज किया गया था. जिसकी शुरूआत साल 1976 में हुई थी.

यही हाल सामान्य डिलीवरी का भी है. प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के क्लेम से इसे इसलिए बाहर किया जा रहा है क्योंकि डिलीवरी और माँ बच्चों के सेहत से जुड़ी योजना पहले से ही चली आ रही है. वहीं डाइलीसिस के मुफ्त इलाज के लिए चली आ रही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस योजना को 2016 में मोदी सरकार ने बंद कर दिया था. अब इसके मरीज प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना से भी बाहर कर दिए गए हैं.

मोदी सरकार के महत्वकांक्षी योजनाओं का जमीनी स्तर पर कामयाब न हो पाने को लेकर तमाम मीडिया रिपोर्ट हैं. नेशनल हेल्थ ऑथरिटी, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के साथ मिलकर यूपीए सरकार के गाइडलाइन पर चल रही है. यूपीए सरकार ने क्लीनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत सवास्थ्य से जुड़े गाइडलाइन तैयार किए थे. इस गाइडलाइन के तहत प्राइवेट हेल्थकेयर के नियंत्रण को लेकर नियम बनाए गए थे. हालांकि बहुत सारे राज्यों ने इसे लागू करने से मना कर दिया था.


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