आओ-आओ महाराज


satirical take on trump visit

 

महाराज ट्रम्प के जैकारों, आओ-आओ महाराज के स्वागत गान और द्वाराचार-पदप्रक्षालन-आरती के बाद, शाही काफिला अम्दाबाद की सडक़ों पर निकला. सड़क के दोनों ओर हाथ हिलाते, प्रशस्ति-भजन गाते लोगों की रंग-बिरंगी पोशाकें देखकर, महाराज को अतीव प्रसन्नता हुई. एकदम गड्ढे-मुक्त सड़क, जहां तक नजर जाती साफ-सफाई और कदम-कदम पर अपनी-महारानी के साथ, मेजबान की विशाल तस्वीरों ने दिल खुश कर दिया.

सड़क के किनारे बने एक मंच पर हो रहे डांडिया पर नजर पड़ी तो बरबस महाराज के ओठों पर मुस्कराहट आ गयी. और अपने स्वागत में बनाई गई खास दीवार देखकर तो बेसाख्ता महाराज के मुख से निकल गया- मेरे यार ने शो चकाचक जमाया है.

पर हवाई अड्डे से स्टेडियम तक का रास्ता लंबा था और काफिले की रफ्तार धीमी. थोड़ी देर में ही महाराज को लगने लगा कि स्वागत में हिलते हाथ काफी जोश से नहीं हिल रहे हैं. फिर लोगों की कतारें छीजती नजर आने लगीं. फिर बीच-बीच में खाली जगहें दिखाई देने लगीं. महाराज ने खास सहायक से फुसफुसा कर पूछा-ये सौ लाख तो नजर नहीं आते. कितने होंगे?

सहायक ने और फुसफुसा कर कहा- सोशल मीडिया पर सौ हजार की चर्चा है. कम हैं, पर बिल्कुल छंटे हुए हैं, पूरी तरह से सुरक्षित. न कोई काला कपड़ा, न मुर्दाबाद, मोदी का गुजरात है, ट्रम्प का ह्युस्टन थोड़े ही है. अपने चुनाव वीडियो का काम तो बखूबी बन ही जाएगा. महाराज ने उससे ही काम चल जाने की एक बार फिर पुष्टि करायी और आंखें मूंदकर थकान उतारने लगे.

स्टेडियम के द्वार पर फिर जैकारों और स्वागत गानों बीच यार ने ही गले लगाकर, अभिवादन समिति की ओर से अगवानी की. समिति वालों को जरा देर से पता चला था कि उनकी कोई समिति भी है और स्वागत उनकी ओर से होना है, सो बेचारे पहुंच नहीं पाए थे. खैर! पीएम के पांव में वैसे भी सब का पांव, खासकर सीएम का. हां! यार के जोश से हैंड शेक कुछ ज्यादा ही लंबा खिंच गया. पर शो इतना धमाकेदार था कि सारी शिकायतें दूर हो गईं.

ह्युस्टन के हाउडी मोदी से बढ़कर निकला, नमस्ते ट्रम्प जी! रॉक शो का रॉक शो और इलैक्शन मीटिंग ऊपर से. महाराज ने मन ही मन कहा, काश इन सब के वोट हमारे यहां भी होते! उनके मुंह से ‘केम चो’ सुनकर, प्रजा पहले हैरान हुई, फिर समझ में आया तो पागल ही हो गईं. फिर तो स्टेडियम बस ट्रम्प जी, ट्रम्प जी के नारों से ही गूंजता रहा. मेजबान यार तक की एक बात पल्ले नहीं पड़ी सिवा यह महसूस होने के कि जो भी हो रहा था, उनके अच्छे के लिए ही था. यार के साथ हाथ पकड़ कर स्टेडियम का चक्कर लगाने से लेकर, हवाई अड्डे की ओर काफी दूर तक वापस लौट जाने तक, महाराज के कान में वही पुकार गूंज रही थी–ट्रम्प जी, ट्रम्प जी!

आगरा में हवाई अड्डे से ताजमहल के लिए काफिला चला तो फिर वही सब. रास्ते में हाथ हिलाने वाले खास नहीं थे, सिवाय पांच हजार बच्चों के, जो घंटों से खड़े-खड़े थक गए थे, फिर भी मुस्तैदी से डटे हुए थे. बाकी रास्ते एकदम खाली थे, पर सड़क के दोनों ओर की दीवारें तस्वीरों से रंगी हुई थीं. दूर से ही दिखाई देने लगे ताजमहल को देखकर ट्रम्प जी मन ही मन उसकी बोली लगाने में मशगूल थे कि खास सहायक ने आगाह किया–बस पहुंच ही गए, द्वार पर ही सीएम जी स्वागत करेंगे.

महाराज ने पूछा–पर यार? सहायक ने बताया- यहां छोटा यार. द्वार पर भगवाधारी को देखकर ट्रम्प महाराज चौंके-मुसोलियम के दरवाजे पर पुजारी! सहायक ने बताया-पुजारी नहीं सीएम हैं. ट्रम्प जी ने गाड़ी से उतरकर पहले मिलाने को हाथ बढ़ाया, दूसरी तरफ से हाथ बढ़ाने की जगह जोड़ दिए गए. फिर भी ट्रम्प जी ने मोहब्बत दिखाते हुए हाथ पकड़ कर साथ ले चलने की कोशिश की, तो भगवा पोशाक अड़ गई. खास सहायक ने कान में फुसफुसाकर कहा–खांटी रामभक्त हैं, अंदर नहीं जाएंगे? वो तो आपकी खातिर… ट्रम्प महाराज ने भी एक साथ स्वागत और विदाई के लिए धन्यवाद में हाथ जोड़ दिए.

बैटरी वाली गाड़ी में सवार होकर महाराज ट्रम्प जैसे-जैसे ताजमहल की तरफ बढ़ते गए, वैसे-वैसे कीमत का उनका अनुमान बढ़ता गया. ताजमहल के सामने की खास बैंच पर, जिस पर हर आने वाला तस्वीर खिंचाता ही है, महाराजा और महारानी ट्रम्प को बैठाया गया, तो महाराज को अचानक ख्याल आया कि उनके लाव-लश्कर के सिवा दूर-दूर तक कोई बंदा नजर ही नहीं आता है.

पूछने पर सहायक ने बताया–बाकी सब के लिए बंद है, ताकि आप अकेले ताजमहल देख सकें. महाराज खुश हुए, हालांकि उन्होंने ज्यादा दिखाया नहीं. मकबरे का चक्कर लगाकर, महाराज ट्रम्प जब शाहजहां की कब्र के पास से गुजर रहे थे, तो उन्हें कुछ अस्पष्ट सी फुसफुसाहट सुनाई दी. उन्हें लगा उनका भ्रम है, पर कब्र के और नजदीक आए तो, आवाज कुछ और साफ हो गई.

महाराज ट्रम्प ने पूछा- कौन? क्या चाहते हो? जवाब आया–बंदे को शाहजहां कहते हैं, बस जनाब का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं. ट्रम्प महाराज ने अपना सामान्य ज्ञान झाड़ा–आप तो खुद बादशाह हो. शुक्रिया आप का हमें करना चाहिए, मोहब्बत की ऐसी यादगार बनवाने के लिए. मेरा शुक्रिया किसलिए? शाहजहां ने शाइस्तगी से कहा–आप आए तो यमुना में गंगा का पानी डाला गया. यमुना साफ न हुई सही, पर कम से कम उसके पानी की बदबू तो कम हो गई. वर्ना कितनी बदबू थी, पूछो ही मत. आप लोग तो एकाध घंटे में निकल जाएंगे, पर मैं तो सैकड़ों सालों से यहीं लेटा हूं. बदबू के मारे चैन से मरा हुआ भी नहीं रह सकता. आप के आने से कम से कम दो-चार दिन तो कुछ आराम मिलेगा. आखिर में बादशाह ने महाराज ट्रम्प से इल्तिजा की–आते रहिएगा!

दिल्ली में झप्पियां तो खूब मिलीं. सलामी-वलामी, फोटो-वोटो खूब हुईं, पर धंधे की बात नहीं जमी. उस पर काफी दूरी पर ही सही, पर ‘वापस जाओ’, ‘मुर्दाबाद’ की आवाजें और. महारानी ने सोचा धंधे की बातों के चक्कर में बोर होने से अच्छा, दिल्ली देख डालें. सैर की सैर, सामाजिकता की सामाजिकता. कहीं पढ़ा था, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हैप्पीनैस की क्लास होती है.

बस निकल लीं कि इंडिया वालों की हैप्पीनैस ट्राई कर लें. पर महारानी के स्कूल में पहुंचते ही, मोटा भाई ने स्कूल का दरवाजा बंद कर दिया और केजरी भाई को दरवाजे से वापस लौटा दिया. हैप्पीनैस को भी अनहैप्पी करा दिया. दबी जुबान में किसी ने सवाल किया तो जवाब मिला–सुरक्षा कारणों से.

यानी दिल्ली में महाराजा ट्रम्प ने अम्दाबाद को यह जाने बिना बहुत मिस किया कि यह उसका नया नाम है, पहले अहमदाबाद था. चलते-चलाते ट्वीट और कर गए–यार मोदी ने खूब मजा कराया. अच्छी बात भी हुई. सब अच्छा रहेगा, बस पड़ौसियों से शांति बनाए रखें, देश में सब समुदायों का भरोसा हासिल करेें और हां, डैमोक्रेसी बचाए रखें.

अमेरिकी मीडिया वालों ने पूछ ही लिया–क्या आप अब भी मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं? महाराज ने जवाबी सवाल किया–मध्यस्थता भली या झगड़ा! किसी ने जोड़ा यार को पसंद नहीं आया तो? जवाब आया- महाराज कौन है? 0


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