‘हिंदू राष्ट्र’ की टिप्पणी वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस


hearing against abrogation of article 370 to be on 14 november

 

भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने वाली टिप्पणी पर कड़ा रूख अख्तियार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी कर दिया है.

ये मामला मेघालय हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एसआर सेन के पिछले साल दिसंबर में दिए गए फैसले से संबंधित है. इस फैसले में उन्होंने टिप्पणी की थी कि विभाजन के समय ही भारत को एक हिंदू देश घोषित किया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा था कि जब विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था तो भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र क्यों बना. जबकि पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र घोषित हुआ.

असम में चल रही एनआरसी की प्रक्रिया के बीच मेघालय हाई कोर्ट के जज एसआर सेन ने कहा था कि विदेशी भारत आकर भारत के नागरिक बन जाते हैं जबकि भारतीय मूल के लोग दर-दर भटकने को मजबूर हैं.

जस्टिस सेन की ये टिप्पणी पिछले साल 12 दिसंबर को दिए गए एक फैसले में आई थी. जिसमें एक आर्मी रिक्रूट को निवास प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया गया था.
जस्टिस सेन ने दिसंबर 2018 में अपने फैसले में कहा था कि यह एक निर्विवाद तथ्य है कि विभाजन के समय लाखों हिन्दुओं और सिखों का कत्लेआम हुआ था. उन्हें अपनी संपत्तियां छोड़कर भारत आने को मजबूर होना पड़ा था.

उन्होंने कहा था कि यह उल्लेख करना गलत है कि जब सिख आए थे, तो उन्हें सरकार से पुनर्वास मिला था, लेकिन हिंदुओं को नहीं दिया गया था. यही नहीं, उन्होंने अपने फैसले में आने वाले समय में भारत के इस्लामिक देश में तब्दील होने की आशंका भी जताई थी.

मेघालय हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक ऐसा कानून बनानें की अपील भी की थी जिससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जयंतिया और गारो लोगों को भारत में बिना किसी सवाल या कागजात के रहने की अनुमति दी जाए.

जस्टिस सेन ने सॉलीसिटर जनरल ए पॉल को आदेश दिया था कि वो इस निर्णय की कॉपी प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय भेजें. जनहित का ध्यान रखते हुए जरूरी कदम उठाने की बात भी कही गई थी.

उनकी इस टिप्पणी पर पूरे देश में विरोध के स्वर उठने लगे और सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की गई. सोना खान और अन्य की ओर से दायर इस याचिका में दलील दी गई कि न्यायमूर्ति सेन द्वारा दिया गया निर्णय “कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण और ऐतिहासिक रूप से भ्रामक” है.

याचिका में कहा गया था कि जस्टिस द्वारा की गई टिप्पणियों से नागरिकता कानून का उल्लंघन होता है और ऐसा प्रतीत होता हैं, मानों भारत देश केवल हिंदुओं का और हिंदुओ के लिए ही है.

याचिका में न्यायमूर्ति सेन से न्यायिक काम वापस लेने की भी मांग की गई थी. जिसे बीते सप्ताह 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.


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