मवेशी कानून के खिलाफ दायर याचिका पर SC ने सरकार से मांगा जवाब


sc send notice to center in plea against 2017 rules in Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960

 

मवेशी व्यापारियों का संगठन मवेशियों के व्यापार से संबंधित नियमों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. 2017 में अधिसूचित किए गए इन नियमों के बारे में कहा जाता है कि ये जानवरों की जब्ती और आर्थिक दंड के लिए एक साधन के तौर पर प्रयोग किए जा रहे हैं.

जस्टिस बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार को नोटिस भेजकर इस याचिका का जवाब देने का आदेश दिया है. ये याचिका ‘भैंस व्यापारी कल्याण संघ’ की ओर से दाखिल की गई है. याचिकाकर्ता के वकील सनोबर अली कुरैशी ने अदालत में कहा कि इन नियमों का हवाला देकर व्यापारियों का शोषण किया जाता है. उन पर दबाव डालकर उनके मवेशी छीन लिए जाते हैं, जिन्हें बाद में गोशाला में डाल दिया जाता है.

मवेशी व्यापारियों ने कोर्ट को बताया कि इन नियमों के हवाले से उनके पशुओं को छीन लिया जाता है. ये पशु बहुत से परिवारों की रोजी-रोटी का साधन होते हैं.

संगठन की ओर से कहा गया कि दो साल पहले सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वो इन नियमों में सुधार करेगा और इन्हें फिर से अधिसूचित करेगा. लेकिन सार्वजनिक उपद्रव का साधन बन चुके इन नियमों में अभी तक कोई सुधार नहीं किया गया है.

जबकि इनके हवाले से मवेशियों के असली मालिकों से उन्हें छीना जा रहा है, उन पर आर्थिक दंड लगाया जा रहा है.

संगठन ने कोर्ट से कहा कि नियम असामाजिक तत्वों का हौसला बढ़ा रहे हैं, जिससे वे मवेशी व्यापारियों के साथ लूटपाट करते हैं. उन्होंने कहा कि ये नियम समाज में ध्रुवीकरण का कारण भी बन रहे हैं.

ये नियम पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के अंतर्गत बनाए गए हैं. इनको 23 मई 2017 को अधिसूचित किया गया था.

इन नियमों के तहत मजिस्ट्रेट किसी व्यापारी के मवेशी को जब्त करने का आदेश दे सकता है. बाद में इन्हें गोशाला, पिंजरापोल आदि जगहों पर भेज दिया जाता है.

इसके बाद अधिकारी इन्हें किसी को एडॉप्ट करने के लिए दे सकते हैं. इसका सीधा सा मतलब ये है कि ऐसे मामलों में अदालत का फैसला आने से पहले ही मवेशी का असली मालिक उनसे वंचित कर दिया जाता है.

इस याचिका में कहा गया है कि ये नए नियम 1960 में बनाए गए अधिनियम की सीमा से बाहर हैं. उदाहरण के लिए अधिनियम की धारा 29 के मुताबिक निजी मवेशी को उस हालत में ही जब्त किया जाएगा जबकि अपराध साबित हो जाए.

इसी अधिनियम में कहा गया है कि अगर मवेशी को चोट लगी है और इलाज की जरूरत है उसी हालत में उसे शेल्टर में रखा जाएगा. और इलाज के बाद उसे उसके मालिक को वापस कर दिया जाएगा.

कानूनन अगर 1960 के अधिनियम के अंतर्गत कोई नियम बनाए जाते हैं तो इन्हें संसद के समक्ष रखना होता है. लेकिन इस मामले में भी कानून का पालन नहीं हुआ है.

इससे पहले जब इन नियमों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया था, तब केंद्र सरकार ने कहा था कि वो इनमें सुधार करेगी, इसके बाद इन्हें फिर से अधिसूचित किया जाएगा.

कोर्ट ने सरकार के इस तर्क पर मामले को रफा-दफा कर दिया था. लेकिन उसके बाद से अब तक इनमें कोई सुधार नहीं हुआ है और ना ही इन्हें फिर से अधिसूचित करने जैसी कोई कार्रवाई हुई है.


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