जंगली: कमाल का एक्शन लेकिन लचर कहानी


review of film junglee

 

निर्देशक : चक रसेल

कलाकार : विद्युत जामवाल, अतुल कुलकर्णी, अक्षय ओबेरॉय, आशा भट्ट, पूजा सावंत

इंसान खुद को जानवर भले ही न मानता हो, पर यह सच है की इस पृथ्वी पर सबसे खतरनाक जानवर इंसान ही है! अगर जंगल में रहने वाले पशु-पक्षी इंसानों की तरह किसी भाषा में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर पाते, तो वे चीख-चीख कर कहते कि ‘यह दो पैरों वाला जानवर सबसे खतरनाक है! भले वे कह नहीं पाते, पर दिल के किसी न किसी कोने में इंसान को अपनी इस पशुता का न सिर्फ भान है बल्कि अभिमान भी है!

इंसान और पशुओं के परस्पर प्रेम को लेकर बॉलीवुड में बहुत कम ही फिल्में बनी हैं. 1971 में आने वाली फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ में पहली बार इंसान की हाथी जैसे विशालकाय जानवर से दोस्ती की गाथा सुनहरे पर्दे पर उतारी गई थी. तब वह फिल्म सुपर-डुपर हिट रही थी. हाथी और इंसान का प्रेम एक बार फिर से फिल्म ‘जंगली’ के माध्यम से फिल्मी पर्दे पर है. चक रसेल की यह फिल्म ‘जंगली’ देख कर हमें भी हाथियों से प्यार सा तो होता है. लेकिन हीरो के एक्शन सीन फिल्म के असली नायकों (हाथियों) पर ज्यादा हावी से होते दिखते हैं.

फिल्म की कहानी में राज नायर (विद्युत जामवाल) शहर में काम करने वाला जानवरों का डॉक्टर है. दस सालों के लंबे अरसे बाद वह अपनी मां की बरसी पर अपने घर ओडिशा लौटता है. ओडिशा में उसके पिता हाथियों को संरक्षण प्रदान करने वाली एक सेंचुरी चलाते हैं. राज के साथ आई पत्रकार मीरा (आशा भट्ट) एक वीडियो जर्नलिस्ट का है, जो कि राज नायर के पिता पर पर फिल्म बनाना चाहती है. हाथियों के साथ मौज-मस्ती करने वाले राज को जरा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनकी खुशहाल सेंचुरी और हाथियों पर शिकारी नज़र गड़ाए बैठा है. हाथी दांत के विदेशी तस्करों के लिए शिकार करनेवाला शिकारी (अतुल कुलकर्णी) सेंचुरी में आकर हाथी दांत हासिल करने के लिए सबकुछ तहस-नहस कर देता है. इतना ही नहीं वह हाथियों के सरदार भोला और राज के पिता की जान लेकर वहां से भाग निकलता है. इन परिस्थितियों में राज चाहकर भी वापस नहीं जा पाता.

उसके साथ एक के बाद एक त्रासदी होती जाती है. वह न सिर्फ अपने बाबा को बल्कि अपने प्रिय हाथियों को भी खोता जाता है. हाथियों के झुंड का जो सरदार हाथी है, वह फिल्म के नायक का बचपन का दोस्त है. हाथियों के दांत के लालच में उसकी स्मगलिंग के एक शिकारी उनका शिकार करता है और फिर नायक उन सबसे बदला लेता है.

निर्देशक चक रसेल ‘जंगली’ से अपनी बॉलिवुड पारी की शुरुआत कर रहे हैं. हॉलिवुड में ‘मास्क’, ‘स्कॉर्पियन किंग’, ‘इरेजर’ जैसी बम्पर हिट फिल्में दे चुके चक रसेल ने बॉलिवुड की नब्ज को उस सधे तरीके से नहीं पकड़ा जैसे वे अपनी हॉलीवुड फिल्मों को पकड़ते आए हैं. हालांकि उन्होंने एक्शन और इमोशन में अपनी जादूगिरी दिखाने की भरपूर कोशिश की है, लेकिन उतने सफल होते नहीं दिखते.

विद्युत जामवाल एक्शन दृश्यों में हर स्तर पर हैरअंगेज साबित हुए हैं, चाहे वह विद्युत द्वारा मुंबई के गुंडों से निपटने के फाइट सीक्वेंस हों या जंगल में तस्करों और शिकारियों के साथ के फाइट दृश्य हों. एक्शन डायरेक्टर चुंग ची ली ने काबिले तारीफ़ काम किया है. विद्युत् जामवाल एक्शन सीन्स में कितने कम्फर्टेबल होते हैं ये इससे पहले हम ‘कमांडो’ और ‘फोर्स’ जैसी फिल्मों में देख ही चुके हैं. ‘जंगली’ में भी वो उतनी ही सफाई से स्टंट्स करते नज़र आते हैं. मार्शल आर्ट्स के मूव्स विद्युत् इतनी सफाई से करते हैं कि उनसे नज़रें नहीं हटतीं. उनको देखकर लगता है कि वो इंडिया के अर्नोल्ड या सिल्वेस्टर स्टैलोन बन सकते हैं.

फिल्म की दो ही चीज़ें बहुत अच्छी कही जा सकती हैं. सिनेमेटोग्राफी और विद्युत् जामवाल के कुछ एक्शन सीन्स. इस फिल्म की शूटिंग थाईलैंड की एक एलीफैंट सैंक्चुरी में हुई है जो की बेहद खूबसूरत जगह है. वहां की खूबसूरती को उतनी ही सुंदरता से फिल्माया गया है. सिनेमैटोग्राफर मार्क इरविन की सिनेमैटोग्राफी में मनोहारी जंगलों, नदियों और उनमें घर बसाए हुए हाथियों को देखना बहुत ही शानदार लगता है.

अभिनय की बात की जाए तो विद्युत ने कलरीपयट्टु योद्धा और हाथियों के साथी के रूप में गजब का काम किया है. उनके एक्शन दृश्यों में उनकी चपलता और फ्लेक्सिबिलिटी आश्चर्यचकित कर देती है. लेकिन जज्बाती दृश्यों वे एक्टिंग करते ही नजर आते हैं. आशा भट्ट और पूजा सावंत ने फिल्म से डेब्यू किया है और दोनों ने कोई बहुत प्रभावी छाप नहीं छोड़ी. हालांकि आशा क्यूट लगी हैं और पूजा कॉन्फिडेंट.

शिकारी और तस्करों का साथ देनेवाले खलनायक को अतुल कुलकर्णी ने अपने अलहदा अंदाज में निभाया है. लेकिन उनके जैसे उमड़ा कलाकार के लिए इससे कहीं जायद चुनौतीपूर्ण रोल होना चाहिए था. इस फिल्म में लंबे समय के बाद मकरंद देशपांडे की उपस्थिति अच्छी लगती है. लेकिन उन्हें न तो अधिक संवाद, न ही अधिक दृश्य दिए गए थे. अक्षय ओबेरॉय और मकरंद देशपांडे अपनी भूमिकाओं में याद रहते हैं.

फिल्म का संगीत समीर उद्दीन ने दिया है. फिल्म का गाना ‘रगजे गरजे’ अच्छा बन पड़ा है. ‘फकीरा घर आजा’ और ‘साथी’ गाने भी विषय के मुताबिक़ हैं. म्यूजिक आपको कहानी से जोड़ने में काफी मदद करता है. ‘जंगली’ का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा लगता है. ‘दोस्ती’ गाने में हाथी और इंसान के रिश्ते को बड़ी खूबसूरती से दर्शाया गया है.

इतने तगड़े एक्शन सीन, दिल जीतने वाली सिनेमैटोग्राफी के बावजूद इस फिल्म में न कोई किरदार डेवलप हुआ है और न ही कहानी. अंत में जो एक मेसेज देने की कोशिश है, वो भी आप तक प्रभावी ढंग से नहीं पहुंचता. फिल्म में दशकों पुराना ड्रामा ही परोसा गया है. शिकारी शिकार करता है, स्मगलिंग करता है और फिर हीरो उन सबका बदला लेता है. इस क्रम में जितने भी किरदार जुड़ते जाते हैं, सभी पूरी तरह अति अभिनय के शिकार नजर आते हैं. फिल्म में जिस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न की गयी हैं, वह भी बेहद फिल्मी लगती है. कहानी में बहुत कुछ छूटा हुआ महसूस होता है क्योंकि आप खुद को कहानी से जोड़ नहीं पाते हैं.

जंगली फिल्म में नायक की एक्टिंग से ज्यादा हाथियों की एक्टिंग दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान लाती है. ये बेजुबान जानवर अपनी मासूमियत से दर्शकों का दिल कुछ हद तक जरूर बहलाते हैं. निर्देशक का सारा ध्यान सिर्फ एक्शन सीन्स पर ही केंद्रित नजर सा आता है, जिसके चलते फिल्म की कहानी अपनी दिशा से भटकती हुई सी लगती है.


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