मोदी दे रहे हैं हिंदी को नई गरिमा: नवोदय विद्यालय समिति के आयुक्त ने लिखा


only twelve states primarily speaks hindi

 

केंद्र सरकार के संचालन वाली नवोदय विद्यालय समिति (एनवीएस) के कमिश्नर ने हिंदी को राष्ट्रीय एकीकरण और राष्ट्रवाद की भाषा कहा है.

दो महीने पहले एक प्रस्ताव आया था कि देश भर के मिडिल स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ाया जाए. इसके बाद देश के कई गैर-हिंदी भाषी राज्यों में इसकी आलोचना हुई थी.

हिंदी पखवाड़ा के मद्देनजर एक संदेश में समिति के कमिश्नर बिस्वाजीत कुमार सिंह ने लिखा है कि हिंदी सभी भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी है.

केंद्र सरकार हर साल 1 से 15 सितंबर को हिंदी पखवाड़ा मनाती है.

उन्होंने नवोदय के लोगों को संबोधित करते हुए लिखा है, “हिंदी में एकता का स्वर गूंजता है. यह सहिष्णुता और राष्ट्र चेतना से जुड़ी भाषा है.”

इसके अलावा संदेश में लिखा गया है,“भारत के प्रधानमंत्री हिंदी के गौरव को बढ़ा रहे हैं. वह न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी हिंदी में भाषण देते हैं. हमें इसी तरह की आसान हिंदी को बढ़ावा देना है. हिंदी को लेकर संकुचित सोच रखने के बजाए इसके प्रति लोगों को जागरुक करने के की जरूरत है.”

संदेश में कहा गया है, “आज जरूरत है कि हम सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को अधिक से अधिक बढ़ावा दें क्योंकि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण को एक सुत्र में बांधने की शक्ति है.”

सिंह ने संदेश में एक छोटी सी कविता भी लिखी है,
“सागर में मिलती दरिया, हिंदी सबका संगम है.”

अखबार द टेलिग्राफ ने सिंह से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

भारतीय भाषाओं के एक शोधकर्ता ने कहा है कि सरकारी एजेंसियां हिंदी को एक महान एकीकृत के तौर पर दिखाने की कोशिश भले ही कर रही हों, लेकिन, जमीनी हकीकत इससे अलग है.

उन्होंने केंद्र के राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हवाला दिया. जिसे जून के महीने में लाया गया था और जिसका मकसद स्कूलों में तीन-भाषा फॉर्मूला लागू करना था. इसके बाद तमिलनाडु और दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों में हिंदी थोपने को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था. लोगों ने सरकार पर आरोप लगाया था कि वह जबर्दस्ती हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है.

नाम ना बताए जाने के शर्त पर शोधकर्ता ने कहा, “केंद्र सरकार के जारी किए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में यह प्रस्ताव था कि कक्षा छह से कक्षा दस तक के विद्यार्थियों के पढ़ने के लिए हिंदी अनिवार्य विषय था. इस एलान के बाद दक्षिण भारत के राज्यों और खासकर तमिलनाडु में बड़ा विरोध हुआ था. सरकार को ड्राफ्ट में संशोधन करना पड़ा और प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा. यह कहना की हिंदी राष्ट्रीय एकीकरण की भाषा है, यह महज कुछ सरकारी अधिकारियों की कल्पना का प्रतीक है.”

नवोदय विद्यालय समिति के सभी उद्देश्यों में से एक उद्देश्य तीन-भाषा फॉर्मूले के कार्यान्वयन के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना है. इसके तहत हिंदी और इंग्लिश के अवाला एक आधुनिक भारतीय भाषा पढ़ना जरूरी था. हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के अलावा एक अन्य स्थानीय भाषा और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में अंग्रेजी पढ़ना अनिवार्य था. यह फॉर्मूला 1968 से तमिलनाडु के अलावा देश भर में लागू है.

2015 में नीति आयोग ने आईआईएम अहमदाबाद के एक रिपोर्ट का आकंलन करने के बाद पाया था कि एनवीएस के अंतर्गत स्कूलों में तीन-भाषीय फॉर्मूला को कायदे से लागू नहीं कर रहे हैं.

नीति आयोग के रिपोर्ट में कहा गया है, “तीन-भाषा फॉर्मूला को लेकर जवाहर नवोदय विद्यालय और एनवीएस प्रशासन ने कहा है कि इसे अच्छे से लागू किया गया है. आईआईएम अहमदाबाद के अध्ययन में जो पता चला है वो हिंदी भाषी क्षेत्रों में लागू नहीं किया है. अध्ययन में जो मुख्य कारण बताया गया है वो विद्यार्थियों का तीसरी भाषा सीखने की ओर दिलचस्पी का कम होना है. उनके तहत भविष्य में इसका कोई खास उपयोग नहीं होने वाला है.”

एनवीएस देश भर में करीब 600 स्कूल चलाता है. होनहार छात्रों को स्कूलों को अंदर रहने के लिए मुफ्त आवास मुहैया करवाई जाती है. तीन-भाषा फॉर्मूला की वजह से ही तमिलनाडु सरकार ने सराकर के राज्य में नवोदय स्कूल बनाने के प्रस्तावों को हमेशा खारिज किया है.


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