बेदम नजर आ रहे हैं लिंगानुपात में सुधार के सरकारी दावे


Slow pace of eradication of malnutrition, by 2022, every third child will be underdeveloped

 

भारत में जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार के सभी सरकारी दावे बेदम नजर आ रहे हैं. साल 20014-16 में प्रति 1,000 लड़कों पर 898 ल़ड़कियों ने जन्म लिया था, जो 2015-17 में घटकर 896 हो गया. जबकि यह संख्या 2013-15 में 900 थी. सैंपल रेजिसट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) की सीरीज के चौथे चरण में ये आंकड़ें सामने आए हैं. इस सर्वेक्षण में 79 लाख लोग शामिल हुए और यह दुनिया का सबसे बड़ा डेमोग्राफिक अध्ययन था.

22 राज्यों में किए गए सर्वेक्षण में से 14 राज्यों में लिंगानुपात देश के औसत लिंगानुपात से बेहतर था. जबकि राजधानी दिल्ली समेत 8 राज्यों में लिंगानुपात देश के औसत अनुपात से काफी कम है. लिंगानुपात के मामले में हमेशा से सवालों के घेरे में रहने वाले राज्य हरियाणा में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है. यहां साल 2015-17 में प्रति 1,000 लड़कों पर 833 लड़कियों ने जन्म लिया है.

सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण भारत में लिंगानुपात 2014-16 में 902 से घटकर 2015-17 में 898 हो गया, जो शहरी भारत के लिंगानुपात (890) से काफी भी बेहतर था. सात राज्यों में लिंगानुपात औसत ग्रामीण लिंगानुपात से कम था. वहीं 14 राज्यों में लिंगानुपात औसत शहरी लिंगानुपात से कम था.

शहरी क्षेत्रों में लिंगानुपात में बेहद भिन्नता देखने को मिली है. जहां मध्य प्रदेश में लिंगानुपात 950 था तो उत्तराखंड में यह महज 816 ही था. उल्लेखनीय है कि एसआरएस डेटा सिर्फ रिकॉर्ड में दर्ज बच्चों के जन्म के आधार पर है. न कि जनगणना की तरह जो देश के हर एक नागरिक की गणना करता है.

इस सर्वेक्षण से सरकार के “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” अभियान की नाकामी का भी पता चलता है. इस अभियान के तहत, सरकार ने लड़की के जन्म की स्थिति में जिला स्तर पर लड़की की शिक्षा में 100 फीसदी मदद देने का वादा किया था. हालांकि इस अभियान के तहत अब तक दो चरणों में सिर्फ 161 जिलों का ही सर्वेक्षण हो सका है. बाकी बचे 479 जिलों का सर्वेक्षण तीसरे चरण में पूरा किया जाएगा. इस योजना का मकसद है कि जन्म पर लिंगानुपात में सुधार करना ही था, लेकिन एसआरएस के सर्वेक्षण से पता चलता है कि योजना अपने इस उद्देश्य में नाकाम रही है.


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