इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर गुमराह कर रही है सरकार?
क्या इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में सरकार ने राज्य सभा को गुमराह किया है? ये सवाल मंगलवार को उठा, जब वित्त राज्य मंत्री पी राधाकृष्णन ने सदन में पूछे गए एक सवाल पर बताया कि इलेक्टोरल बेयरर बॉन्डों के निर्गम को लेकर निर्वाचन आयोग ने कोई चिंता जाहिर की है, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है.
जबकि पहले से आम जानकारी इसके उलट रही है. 26 मई 2017 को आरटीआई अर्जी पर निर्वाचन आयोग ने अलग सूचना दी थी. उसके मुताबिक आयोग ने केंद्र को पत्र लिख कर इस बारे में चिंता जताई थी.
आयोग की ये राय सामने आई है कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स से चुनावों में काले धन का उपयोग बढ़ेगा. इस व्यवस्था को आयोग ने अपारदर्शी माना था. ये भी कहा था कि इससे फर्जी कंपनियां बनाने और इसके जरिए ब्लैक मनी को ठिकाने लगाने का रास्ता खुल जाएगा.
गैर-सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी ने वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान 1,027.34 करोड़ रुपये की कुल आय घोषित की है. इसमें 74 प्रतिशत (758.47 करोड़ रुपये) खर्च किए गए हैं. 2017-18 के दौरान बीजेपी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से 210 करोड़ रुपये की आय प्राप्त की.
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है
इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल देश में राजनीतिक चंदा देने के लिए किया जा रहा है. इसका प्रावधान एनडीए सरकार ने ही किया. भारतीय रिजर्व बैंक ये बॉन्ड जारी करता है. इलेक्टोरल बॉन्ड बियरर चेक जैसे होते हैं. इसके तहत मेट्रो शहरों में स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चार मुख्य शाखाओं से कोई भी व्यक्ति या संस्था केवाईसी नियम पूरे कर ये बॉन्ड खरीद सकता है. उसके जरिए वह अपनी पसंद की पार्टी को चंदा दे सकता है.
राजनीतिक पार्टी अपने खाते में बॉन्ड का पैसा लेती हैं. बॉन्ड से ये पता नहीं चलता कि चंदा किसने दिया है. इस बॉन्ड को पाने के लिए राजनीतिक दलों को अपने एक बैंक अकाउंट की सूचना चुनाव आयोग को देनी होती है, जिसमें वे इस बॉन्ड के पैसे को डाल सकते हैं.
इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े विवाद
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने एक अखबार में दिए इंटरव्यू में कहा था कि राजनीतिक चंदे में इस्तेमाल होने वाला इलेक्टोरल बॉन्ड पूरे सिस्टम की पारदर्शिता खत्म कर देगा. ये खतरनाक हो सकता है.
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने राजनीतिक दलों के चंदे को पारदर्शी बनाने के नाम पर चुनावी बॉंड जारी करने की सरकार की पहल को अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र, दोनों के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था. उन्होंने चुनावी बॉन्ड को राजनीतिक चंदे के नाम पर काले धन को सफेद धन में तब्दील करने का माध्यम बताया था.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था कि इस योजना को लागू करने के पीछे बीजेपी का गलत इरादा है. साथ ही उन्होंने प्रत्येक दाता का नाम एक बार सार्वजनिक करने की मांग भी की थी.
ज्यादातर विपक्षी दल इलेक्टोरल बॉन्ड का लगातार विरोध कर रहे हैं. विपक्ष के मुताबिक इस योजना का लाभ सत्तारूढ़ पार्टी को ही मिलेगा. लेकिन बीजेपी का दावा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने के पीछे उसकी मंशा केवल चुनावों में पारदर्शिता लाने की है.