मार्क्सवादी राजनीति के संत थे एके रॉय


former lok sabha mp and founder of marxist coordination committee mcc ak roy passes away

 

पूर्व लोकसभा सांसद और मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी) के संस्थापक एके रॉय का धनबाद के एक अस्पताल में निधन हो गया. 21 जुलाई को सुबह 11.15 पर सेंट्रल अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. वह 90 वर्ष के थे और 13 दिन से अस्पताल में भर्ती थे.

वरिष्ठ वाम नेता और सीटू झारखंड प्रदेश समिति के मुख्य संरक्षक अरुण कुमार रॉय को उम्र संबंधी दिक्कतों के कारण आठ जुलाई को केंद्रीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था. डॉक्टरों ने बताया कि उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था जिसके कारण उनका निधन हुआ.

वह झारखंड आंदोलन के संस्थापकों में से एक थे. धनबाद से तीन बार के सांसद रॉय झारखंड की क्षेत्रीय पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति के संस्थापक भी थे.

वह तीन बार धनबाद के सांसद और तीन बार सिंदरी विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. इसके बावजूद उनका बैंक खाता ‘शून्य बैलेंस’ ही दिखाता रहा. उन्होंने जेपी आंदोलन में भी हिस्सा लिया.

झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) सुप्रीमो शिबू सोरेन और पूर्व सांसद दिवंगत बिनोद बिहारी महतो के साथ रॉय ने 1971 में बिहार से अलग राज्य की मांग को लेकर झारखंड आंदोलन शुरू किया. झारखंड 15 नवंबर 2000 को अलग राज्य बन गया.

रॉय का जन्म सपुरा गांव में हुआ जो अब बांग्लादेश में है. उनके पिता शिवेंद्र चंद्र रॉय वकील थे. उन्होंने 1959 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में एमएससी की और दो साल तक एक निजी कंपनी में काम किया. बाद में वह 1961 में पीडीआईएल सिंदरी में शामिल हो गए.

उन्होंने नौ अगस्त 1966 को बिहार बंद आंदोलन में भाग लिया. इसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. उन्हें रॉय दादा के नाम से भी जाना जाता था.

राजनीति में आने से पहले वे सिंदरी फर्टिलाइजर फैक्ट्री में केमिकल इंजीनियर के रूप में कार्यरत थे. तत्कालीन सरकार का विरोध करने के कारण प्रोजेक्ट्स एंड डेवलेपमेंट इंडिया लिमिटेड (पीडीआईएल) प्रबंधन ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया.

रॉय श्रमिक संघ में शामिल हुए और उन्होंने सिंदरी फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) और निजी कोयला खान मालिकों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. साल 1967 में उन्होंने माकपा की टिकट पर बिहार की सिंदरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए.

हालांकि उन्होंने माकपा से इस्तीफा दे दिया और अपनी मार्क्सवादी समन्वय समिति बनाई. इसके बाद उन्होंने बिहार के सिंदरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए.

रॉय को उनके साथी और समर्थक ‘राजनीतिक संत’ बुलाते थे. उनकी सादगी और ईमानदारी का हर कोई कायल था. वे धनबाद के पुराना बाजार स्थित एमसीसी कार्यालय में ही रहा करते थे.

रॉय पिछले एक दशक से धनबाद से 17 किलोमीटर दूर पथाल्दिह इलाके में एक पार्टी कार्यकर्ता के घर में रह रहे थे. इससे पहले वह यहां पुराना बाजार में टेम्पल रोड पर अपने पार्टी कार्यालय में रहे.

पूर्व एमसीसी विधायक आनंद महतो ने कहा, “वह देश के पहले सांसद थे जिन्होंने सांसदों के लिए 1989 में भत्ते एवं पेंशन बढ़ाने वाले प्रस्ताव का विरोध किया था हालांकि उनका प्रस्ताव गिर गया.”

मार्क्सवाद और मजदूर आंदोलन पर उनके लेख विदेशों में भी प्रकाशित हुए.


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