सॉवरेन बॉन्ड योजना पर सरकार में किसी ने सवाल नहीं उठाया: सुभाष गर्ग


Garg says none in govt questioned offshore bonds issue when he was DEA Secy

 

वित्त मंत्रालय के सबसे वरिष्ठ नौकरशाह रहे सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा है कि विदेशों से धन जुटाने के लिए भारत सरकार की ओर से पहली बार बॉन्ड जारी करने के विचार का उस समय सरकार में किसी ने भी विरोध नहीं किया जब वह वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव पद पर थे.

गर्ग को वित्त मंत्रालय से अचानक स्थानांतरित कर विद्युत मंत्रालय में भेज दिया गया है. उनके इस स्थानांतरण के पीछे पहली बार विदेशों से धन जुटाने के लिए जारी किए जाने वाले सॉवरेन बॉन्ड योजना को जिम्मेदार माना जा रहा है. इस योजना की घोषणा 2019- 20 के बजट में की गई है.

वहीं गर्ग ने विद्युत मंत्रालय भेजे जाने के बाद सरकारी नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृति के लिए आवेदन कर दिया है. आर्थिक मामलों के विभाग में इस बात को लेकर कुछ वर्गों में यह दोष मढ़ा जा रहा है कि विभाग ने विदेशी मुद्रा में जारी होने वाले सरकारी बॉन्ड में आने वाले संभावित संकट के बारे में नहीं सोचा गया. कहा जा रहा है कि गर्ग ने मुख्य रूप से इसके सकारात्मक पहलू को ही देखा.

गर्ग ने अपनी स्वैच्छिक सेवानिवृत आवेदन को कम महत्वपूर्ण माने जाने वाले बिजली मंत्रालय में स्थानांतरण करने से जोड़ने से इनकार करते हुए कहा कि उन्होंने अपने इस फैसले के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को 18 जुलाई को ही बता दिया था.

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हालांकि, उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति के लिए 25 जुलाई को आवेदन किया. इससे पहले सरकार ने 24 जुलाई को उन्हें आर्थिक मामले विभाग से बिजली मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया था.

गर्ग ने विद्युत मंत्रालय के सचिव का कार्यभार संभालने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा, “सरकारी बॉन्ड जारी करने को लेकर मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह घरेलू स्तर पर उपलब्ध संसाधनों पर दबाव कम करने की मंशा से किया गया, खासतौर से निजी क्षेत्र के लिए संसाधनों की उपलब्धता बनाए रखने के लिहाज से किया गया. यह फैसला काफी सोच विचार कर लिया गया. इसके काफी फायदे हैं जबकि जोखिम बहुत कम हैं और जब तक मैं वहां (वित्त मंत्रालय) था, मैंने नहीं सुना कि किसी ने इस पर सवाल उठाए.”

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने 2019- 20 के बजट में भारत सरकार की तरफ से पहली बार विदेशी बाजारों से धन जुटाने के लिए सरकारी बॉन्ड जारी करने की योजना की घोषणा की. जिसके बाद इस पहल को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और डिप्टी गवर्नरों ने आशंका जाहिर की. उनका कहना था कि 1991 के विदेशी मुद्रा संकट के समय भी जिस उपाय को नहीं अपनाया गया उसको लेकर सर्तकता बरती जानी चाहिए. आलोचकों ने कहा कि इस तरह की पहल से सरकार के समक्ष विदेशी मुद्रा संकट खड़ा हो सकता है.

इस योजना को लेकर कई पक्षों से नकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने वित्त मंत्रालय से योजना को लेकर पुनर्विचार करने को कहा है और इसके स्थान पर रुपये में अंकित बॉन्ड जारी करने का सुझाव दिया है.


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