तीन करोड़ विद्यार्थियों के सोशल मीडिया अकाउंट में होगा सरकार का दखल
केंद्र सरकार देश भर में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के करीब तीन करोड़ विद्यार्थियों के सोशल मीडिया अकाउंट से जुड़ने की योजना बना रही है. सरकार इस कदम को संस्थान और विद्यार्थियों के किए महत्वपूर्ण कामों को जानने का जरिया बता रही है.
हालांकि, इस पहल ने कई शिक्षाविदों के बीच चिंता बढ़ा दी है. उन्होंने इसे “खतरनाक” कदम बताया है. उनका कहना है कि इस तरह विद्यार्थियों की निजी जानकारी का दुरुपयोग होगा. विद्यार्थियों की सोच क्या है, वे किस राजनैतिक विचारधारा के समर्थक हैं, इसका सीधा असर उनके संकाय के साथ साक्षात्कार पर पड़ेगा.
एक विश्वविद्यालय के शिक्षक ने बताया कि विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए साक्षात्कार देने आए उनके एक विद्यार्थी को इसलिए रिजेक्ट कर दिया गया था क्योंकि उसने सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी बातें लिखी थीं.
सरकार ने सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रमुखों से कहा है कि वे ये सुनिश्चित करें कि सभी विद्यार्थियों के फेसबुक/ट्विटर/इंस्टाग्राम अकाउंट संस्थान के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाए.
3 जुलाई को उच्च शिक्षा विभाग के सचिव आर सुब्रमण्यम ने पत्र लिख कर सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को इस बारे में सूचित किया. पत्र से पता चलता है कि इसके तहत सरकार देश के लगभग 900 विश्वविद्यालयों और 40,000 कॉलेजों के विद्यार्थियों से जुड़ेगी.
पत्र में कहा गया है कि इस योजना के जरिए विद्यार्थियों और संस्थानों के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग उनके उपलब्धियों के प्रसार में किया जाएगा.
इस योजना के तहत हर संस्थान में एक शिक्षक और एक गैर-शिक्षक अधिकारी को “सोशल मीडिया चैंपियन (एसएमसी)” बनाया जाएगा.
पत्र में कहा गया है कि एसएमसी सभी उच्च संस्थानों और मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) को समय-समय पर सभी संस्थानों और विद्यार्थियों के अच्छे कामों की सूचना देगा. सभी एसएमसी संस्थानों की ओर से फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम अकाउंट को संचालित करेंगे. उन्हें इसे बाकि सभी उच्च संस्थानों और एमएचआरडी के साथ जोड़ना होगा.
पत्र में लिखा गया है, “सभी विद्यार्थियों के फेसबुक/ट्वीटर/इंस्टाग्राम अकाउंट को सभी उच्च संस्थानों और एमएचआरडी के फेसबुक/ट्वीटर/इंस्टाग्राम से जोड़ा जाए. सोशल मीडिया पर हर हफ्ते संस्थान की या किसी शिक्षक से जुड़ी या फिर किसी विद्यार्थी की एक सकारात्मक कहानी, न्यूज या कार्यक्रम को प्रचारित किया जाए. उच्च संस्थानों से जुड़ी सकारात्मक खबरों को रिट्वीट किया जाए ताकि बाकि संस्थान या विद्यार्थियों को भी उनसे प्रेरणा मिले.”
एमएचआरडी की देखरेख वाली वेसाइट “ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हाइयर एजुकेशन” पर सभी संस्थानों से 31 जुलाई तक अपने अपने सोशल मीडिया चैंपियन की जानकारी अपलोड करने को कहा गया है.
अखबार द टेलिग्राफ से बातचीत में आर सुब्रमण्यम ने कहा, “इस मुद्दे पर किसी भी तरह के संदेह की जरूरत नहीं थी. यह एक अच्छी पहल है, जहां लोग एक दूसरे को प्रेरित करेंगे. मुझे इसमें किसी भी प्रकार के डर की वजह नहीं नजर आती है.”
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डीयूटीए) के अध्यक्ष राजीब रे ने कहा, “सरकार के पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए हमें डर है कि फेसबुक/ट्विटर/इंस्टाग्राम जैसे अनौपचारिक प्लेटफॉर्म को औपचारिक प्लेटफॉर्म के साथ जोड़कर बड़े पैमाने पर निगरानी रखी जाएगी.”
उन्होंने कहा, “विद्यार्थियों पर निगरानी रखने की वजह से उनपर संस्थान और सरकार की नीतियों से जुड़ी केवल सकारात्मक खबरों को शेयर करने का दबाव पड़ेगा. हम चाहेंगे कि उच्च संस्थानों को अपनी वेबसाइट पर विद्यार्थियों के लिए अपनी कहानी बताने की जहग देनी चाहिए. नागरिकों को उनकी कहनी और विचार बांटने के लिए मिले मंच को नहीं छीनना चाहिए.”
दिल्ली विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य अपुर्वानंद ने कहा, “विद्यार्थियों पर निगरानी रखने का यह खतरनाक तरीका है.” उन्होंने कहा, “कई सारे विद्यार्थी इस जाल में फंस जाएंगे. शिक्षकों पर अनुपालन करने का दबाव होगा और जब विद्यार्थी नेटवर्क में रहेंगे तो सरकार के लिए उन्हें काबू में करना आसान होगा.”
गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य एन रघुनराम ने कहा, “पत्र से लगता है कि यह योजना सकारात्मक और प्रासंगिक मुद्दों के प्रचार पर केंद्रीत होगी. जो कि ठीक है. लेकिन, शिक्षकों और गैर-शिक्षकों को भी इस योजना का हिस्सा होना चाहिए था.” उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, “अगर सरकार का मकसद संचार की सुविधा को आसान बनाना है तो इसमें सभी हितधारकों को शामिल करना चाहिए. सिर्फ विद्यार्थियों के ही सोशल मीडिया अकाउंट को क्यों जोड़ा जा रहा है.”