जेएनयू में प्रोफेसर एमिरेटस के तौर पर बरकरार रहेंगी इतिहासकार रोमिला थापर


romila thapar selected by american philosophical society without submission of cv

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उच्च शिक्षा सचिव आर सुब्रमण्यम ने स्पष्ट किया है कि किसी भी प्रोफेसर एमेरिटस खासकर सम्मानित अकादमिकों की जेएनयू में स्थिति नहीं बदली जाएगी और वो पढ़ाना जारी रखेंगे.

आर सुब्रमण्यम ने ट्वीट किया है, “जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के उप कुलपति से प्रोफेसर एमेरिटस के विवाद को लेकर चर्चा हुई है. किसी भी प्रोफेसर एमेरिटस खासकर सम्मानित अकादमिकों की अकादमिक स्थिति में बदलाव नहीं किए जाएंगे.”

इससे पहले खबर आई थी कि मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन ने सीवी जमा करने को कहा है ताकि वो बतौर प्रोफेसर एमेरिटस पढ़ाना जारी रख सके. कहा गया था कि वो पढ़ाए या नहीं इस पर सीवी देखने के बाद फैसला किया जाएगा.

जेएनयू के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने पिछले महीने थापर को पत्र लिखकर उनसे सीवी जमा करने को कहा गया था. पत्र में लिखा था कि विश्वविद्यालय एक समिति का गठन करेगी जो थापर के कामों का आकलन करेगी और फैसला करेगी कि थापर को प्रोफेसर एमेरिटस के तौर पर जारी रखना चाहिए या नहीं.

उल्लेखनीय है कि रोमिला थापर केंद्र सरकार की नीतियों की घोर आलोचक रही हैं.

जेएनयू के तीन वरिष्ठ शिक्षकों ने इस बात पर हैरानी जताई है क्योंकि कभी भी किसी एमेरिटस प्रोफेसर से सीवी जमा करने को नहीं कहा गया है. दो शिक्षकों ने कहा कि एक बार चुने जाने के बाद इस पद पर शैक्षिक जीवनभर बना रहता है.

नाम ना बताने की शर्त पर जेएनयू के एक वरिष्ठ संकाय ने कहा, “यह पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित कदम है. प्रोफेसर थापर शिक्षा के निजीकरण, संस्थानों की स्वायत्तता खत्म करना और जेएनयू समेत कई संस्थानों द्वारा मतभेद की आवाज को कुचलने की कोशिश समेत सभी नीतियों की घोर आलोचक रहीं हैं.”

इस पद के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शैक्षिकों को ही चुना जाता है. जेएनयू में जिस सेंटर से एक प्रोफेसर सेवानिवृत्त होता है उसका नाम प्रस्तावित होता है. इसके बाद संबंधित बोर्ड ऑफ स्टडीज और विश्विद्यालय के अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद मंजूरी देते हैं.

इस पद के लिए शैक्षिक को कोई वित्त लाभ नहीं मिलता है. उन्हें संबंधित सेंटर में सिर्फ एक कमरा दिया जाता है जहां वह अपने अकादमिक कामों को अंजाम दे सकें. वह कभी-कभा लेक्चर देते हैं और शोधकर्ता विद्यार्थियों को सुपरवाइज कर सकते हैं.

अखबार द टेलिग्राफ ने इस संबंध में रजिस्ट्रार की टिप्पणी जानने के लिए कॉल और मेसेज भेजा था, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.

थापर करीब छह दशकों से शिक्षक और शोधकर्ता रहीं है. उन्हें प्रारंभिक भारतीय इतिहास में विशेषज्ञता प्राप्त है. जेएनयू में वह वर्ष 1970 से 1991 तक प्रोफेसर रहीं थी. इसके बाद वर्ष 1993 में उन्हें प्रोफेसर एमेरिटा के तौर पर चुना गया था. उन्हें यूएस लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस के प्रतिष्ठित ‘क्लूज पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका है. यह सम्मान नोबेल पुरस्कार द्वारा कवर नहीं किए गए अध्ययन में जीवन भर की उपलब्धि के लिए दिया जाता है.

उनकी किताब ‘द पब्लिक इंटलेक्चुअल इन इंडिया’ में नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में बढ़ रहे असहिष्णुता का आलोचनात्मक विश्लेषण करता है.


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