कतर में फिर बातचीत करेंगे अमेरिका और तालिबान


article about afghanistan and us taliban peace accord

 

अमेरिका और तालिबान अफगानिस्तान में 17 साल से जारी संघर्ष को समाप्त करने के लिए कतर में फिर से मुलाकात करेंगे. तालिबान के संस्थापक समेत अन्य वरिष्ठ नेता अमेरिका के विशेष दूत के साथ अगले दौर की बातचीत करने के लिए कतर पहुंच गए हैं.

पिछले दिनों दोहा में हुई बैठक के दौरान शांति संधि की रूपरेखा पर सहमति बनी थी. तालिबान ने अफगानिस्तान को दोबारा अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों की सुरक्षित पनाहगाह नहीं बनने देने का वादा किया था.

2001 में अमेरिकी सेना द्वारा अफगानिस्तान की सत्ता से बेदखल किए जाने बाद पहली बार अमेरिका और तालिबान वार्ता कर रहे हैं.अमेरिका ने 17 साल से चल रहे अफगानिस्तान युद्ध का बातचीत के जरिए हल निकालने के लिए अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं.

पाकिस्तान से तालिबान के कुछ नेता कतर की राजधानी दोहा पहुंच गए हैं. उन्होंने अमेरिकी विशेष दूत ज़लमय खलीलज़ाद से बातचीत करने से पहले अपनी मांगे उनके सामने रखी.

तालिबान के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहीद ने प्रेस से कहा, ‘‘ जी हां, इस बात की संभावना है कि हम किसी नतीजे पर पहुंच जाएं.’’

दोहा में तालिबान के प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई कर रहे मुल्ला अब्दुल गनी बरादर संगठन के सह संस्थापक है. उसे पिछले साल पाकिस्तान की जेल से रिहा किया गया है. साल 2010 में पाकिस्तान और सीआईए के एक संयुक्त अभियान में गिरफ्तार होने के बाद से बरादर वहां की जेल में बंद था.

पहले हुई बातचीत का केंद्र अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और इस बात की गारंटी पर रहा कि अमेरिका पर हमला करने के लिए अफगानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल नहीं होगा.

ऐसी उम्मीद है कि अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष दूत ज़लमे खलीलज़ाद तालिबान पर अफगानिस्तान सरकार से सीधे बातचीत का दबाव बना सकते हैं. हालांकि तालिबान सरकार इस पर बातचीत करने से इनकार करती आई है.

अल-कायदा और इसके नेता ओसामा बिन लादेन को पनाह देने वाले तालिबान ने अक्टूबर 2001 तक अफगानिस्तान में शासन किया था. हालांकि 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया था.

तालिबान फिर से अपना सिर उठा रहा है और अफगान सेना तथा पुलिस पर करीब-करीब रोज़ हमला करता है. इसने आधे से ज्यादा देश पर कब्जा कर लिया है.

तालिबान का मानना है कि अमेरिका समर्थित अफगानिस्तान सरकार बेकार है और पश्चिमी देशों की कठपुतली है. वह सरकार के साथ बातचीत की कई पेशकशों को ठुकरा चुका है.


ताज़ा ख़बरें