क्या सुप्रीम कोर्ट वकीलों की जुबान पर लगाम लगाने की तैयारी में है?


review petition filed in ayodhya verdict

 

सुप्रीम कोर्ट वकीलों की मीडिया में बयानबाजी पर रोक लगाने के बारे में विचार कर रहा है. बीते बुधवार को प्रशांत भूषण पर अवमानना के मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इस बात के संकेत दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट की ये रोक उन मामलों पर लागू हो सकती है जो कोर्ट में विचाराधीन हैं. इसमें उन जजों के बारे में टिप्पणी करने की रोक भी शामिल है जो संबंधित मामले की सुनवाई कर रहे हैं.

इस मुद्दे पर पहले भी बहस होती रही है और इसको लेकर कोर्ट अपनी चिंता जाहिर कर चुका है. ये बहस प्रशांत भूषण पर उस मामले के बाद और तेज हो गई है, जिसमें अटॉर्नी जनरल ने उन पर अवमानना का आरोप दायर किया है.

प्रशांत भूषण नागरिक अधिकारों से जुड़े मामलों की पैरवी के लिए जाने जाते हैं.

प्रशांत भूषण पर सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा, “कुछ मामलों में कैमरों की चकाचौंध और मीडिया का ध्यान खींचने की कोशिश जरूरत से ज्यादा हो रही है, अब इसे नियंत्रित करना जरूरी है.”

पीठ ने कहा, “आजादी अपने साथ जिम्मेदारी भी लाती है.” पीठ के मुताबिक कुछ वकील आचार संहिता को ना मानते हुए जारी मामलों में भी जजों पर टिप्पणी करने से नहीं चूकते हैं.
इस दौरान जस्टिस मिश्रा ने कहा कि न्यायालय की सुरक्षा जरूरी है. उन्होंने कहा, “अगर बार ही न्यायालय की हत्या पर उतारू हो जाए तो क्या किया जा सकता है.”

पीठ ने कहा कि कुछ वकील तो याचिका दाखिल होते ही सीधे मीडिया में दौड़े चले जाते हैं. कोर्ट ने कहा कि कुछ मामलों जहां आरोप बाद में गलत साबित होते हैं और मामला खत्म हो जाता है, लेकिन उससे पहले ही मीडिया की वजह से मामले का गलत प्रचार हो चुका होता है.

पीठ ने कहा, “जब मामला विचाराधीन होता है तब वकीलों से क्या उम्मीद होती है? क्या इस दौरान उन्हें मीडिया में जाकर टीवी पर होने वाली बहस में शामिल होना चाहिए.”

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सीबीआई के अंतरिम निदेशक एम नागेश्वर राव की नियुक्ति पर ट्वीट को लेकर वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अदालत की अवमानना की अर्जी लगाई थी. अटार्नी जनरल का आरोप है कि प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट में अदालत को घसीटा है.


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