यौन उत्पीड़न के विरोध में सड़कों पर महिलाएं


third of female lawyers is harassed finds international bar association study

 

दिल्ली में ‘प्रतिष्ठा मार्च’ में हजारों की तादाद में जुटीं महिलाओं ने पहली बार सड़कों पर उतरकर यौन हिंसा के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की. यह पहली बार है जब यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाएं इस तरह से सामूहिक रूप से एकजुट हुईं.

बीते साल 20 दिसंबर को मुंबई से शुरू हुआ महिलाओं का काफिला कल दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंचा. देशभर से आईं तमाम महिलाएं यौन उत्पीड़न के खिलाफ अपना आक्रोश जताने, न्याय मांगने और दूसरी महिलाओं के साथ समर्थन जताने के लिए पहली बार राष्ट्रीय राजधानी में जुटीं.

इस मार्च में उन महिलाओं और बच्चों ने बड़ी तादाद में हिस्सा लिया, जो अपने-अपने जीवन में यौन उत्पीड़न का सामना कर चुके हैं. देश के करीब 24 राज्यों के 200 से अधिक जिलों से आईं ये महिलाएं 20 दिसंबर को मुंबई से अपनी यात्रा शुरू करते हुए 1,000 किलोमीटर का रास्ता तय कर दिल्ली पहुंचीं.

मार्च में 56 वर्षीय भंवरी देवी ने भी हिस्सा लिया था. 25 साल पहले सामूहिक बलात्कार और हिंसा की शिकार हुईं भंवरी देवी को आज भी न्याय का इंतजार है. उन्होंने कहा कि वो न्याय की अपनी लड़ाई जारी रखेंगी.

देश के पहले अखिल भारतीय नेटवर्क ‘द नेशनल नेटवर्क ऑफ सरवाईवर्स’ ने भारत के 25 राज्यों और 250 जिलों से आईं 25,000 से अधिक महिलाओं और उनके परिजन के इस मार्च का जिम्मा संभाला और उनका मार्गदर्शन किया. महिलाओं के साथ इस मार्च में देश भर से 2,000 पक्षकारों, 200 नीति निर्माता और 2,000 वकीलों ने हिस्सा लिया. रामलीला मैदान में इसका समापन हुआ. मार्च का हिस्सा रहे लोगों ने अपने हाथों पर गुलाबी रंग का रिबन बांध कर एकजुटता दिखाई.

भंवरी देवी ने यौन हिंसा के खिलाफ आक्रोश जताते हुए कहा, ‘‘मैं चुप नहीं रहूंगी. जब तक न्याय नहीं मिलता तब तक अपनी आखिरी सांस तक मैं लड़ती रहूंगी. भंवरी देवी मामले के बाद कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिये विशाखा दिशानिर्देश बनाया गया था.’’

‘राष्ट्रीय ग्रामीण अभियान, डिग्निटी मार्च’ के संयोजक आशिफ शेख ने कहा कि जब यह मार्च शुरू हुआ तब उनका उद्देश्य बच्चों और महिलाओं को प्रोत्साहित करना था कि वे बिना शर्म और झिझक के यौन उत्पीड़न के अपने अनुभवों के बारे में बात कर सकें और पीड़ितों को शर्मिंदा करने की संस्कृति को खत्म करें.

उन्होंने पत्रकारों को बताया, ‘‘यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ जहां बलात्कार के खिलाफ व्यापक गुस्सा है वहीं लाखों पीड़ित विशेषरूप से बच्चे व्यावसायिक यौन शोषण और समुदाय आधारित वेश्यावृत्ति के मामलों में फंसते हैं. समाज कहता है कि उन्हें इसके लिए पैसे मिलते हैं इसलिए यह बलात्कार नहीं है. लेकिन यह लगातार बलात्कार और घृणित अपराध का मामला है.’’

अपने साथ हुए खौफनाक हादसे को याद करते हुए उज्जैन से आई पीड़िता ने कहा कि नौकरी दिलाने के नाम पर उनकी मानव तस्करी की गई और बलात्कार किया गया.


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