1951 के बाद से प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घटकर एक तिहाई हुई


Since 1951, per capita water availability has decreased to one-third

 

देश में प्रति व्यक्ति वार्षिक पानी उपलब्धता वर्ष 2025 तक घटकर 1,465 घन मीटर रह जाने का अनुमान है. कृषि क्षेत्र में जल प्रबंधन के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक टी महापात्र ने बताया कि प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता वर्ष 1951 में 5,177 घन मीटर थी जो वर्ष 2014 में घटकर 1,508 क्यूबिक मीटर रह गई है.

उन्होंने चेताया, ‘‘पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता वर्ष 2025 तक 1,465 घन मीटर और वर्ष 2050 तक 1,235 घन मीटर तक घट जाने का अनुमान है. यदि यह और घटकर 1,000-1,100 क्यूबिक मीटर के आसपास रह जाती है, तो भारत को जल संकट वाला देश घोषित किया जा सकता है.’’

महापात्र ने आशंका जाहिर की कि ऐसी स्थिति में पानी को लेकर राज्यों के भीतर और अलग -अलग राज्यों के बीच लड़ाई बढ़ सकती है.

आईसीएआर ने यह भी घोषणा की कि वह भारत के लिए फसल योजना के संबंध में सुझाव देने के मकसद से एक तंत्र विकसित करने की ओर ध्यान दे रहा है, जिसके तहत किसानों को यह सुझाव दिया जायेगा कि किस क्षेत्र में किस फसल को उगाया जाए.

उन्होंने कहा कि कुल बुवाई रकबे की कुल 14 करोड़ हेक्टेयर भूमि में से केवल 48.8 प्रतिशत रकबे को ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध है और बाकी बारिश पर निर्भर है. उन्होंने कहा कि कुल छह करोड़ 83 लाख हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र में से लगभग 60 प्रतिशत भूजल से सिंचित होते हैं.

महापात्र ने कहा, ‘‘कृषि क्षेत्र में पानी की खपत को कम करने की आवश्यकता है. हम कम पानी में भी अधिक उत्पादन कर सकते हैं.’’

पानी की कमी को एक गंभीर मुद्दा बताते हुए, महापात्र ने कहा कि आईसीएआर ने एक जुलाई से 15 अक्टूबर तक अपने खेतों में पानी के सही उपयोग के बारे में किसानों को शिक्षित करने के लिए एक अभियान शुरू किया है. उन्होंने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से पहले ही 10 लाख किसान तक पहुंच बनाई गई है और अन्य पांच लाख किसानों तक पहुंचने की योजना है.

उन्होंने कहा कि 90 लाख हेक्टेयर के वर्तमान स्तर से सूक्ष्म सिंचाई के तहत खेती के रकबे को दोगुना करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि इसे हासिल करने के लिए, किसानों को आगे आना होगा.

महापात्र ने कहा कि अत्यधिक सिंचाई से पानी और ऊर्जा दोनों की बर्बादी होती है और इससे उर्वरकों की क्षमता भी कम हो जाती है.

फसल विविधीकरण पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘फसलों में बदलाव की आवश्यकता है. यदि कम पानी है, तो उन फसलों की खेती की जानी चाहिए जो कम पानी सोखते हैं.’’उन्होंने कम पानी खपत वाले तिलहन, मोटे अनाज और दालों की खेती की वकालत की.


खेती-किसानी