पेप्सिको के विरोध की दरकार


PepsiCo to withdraw case against farmers

 

भारत में लोकसभा चुनाव के शोर के बीच अमरीकी महाकाय कंपनी पेप्सिको ने भारत की किसानी पर हमला किया है. दरअसल, पेप्सिको कंपनी ने गुजरात के साबरकाठा और अरावली के 9 किसानों पर उसके आलू के चिप्स के ब्रांड Lays के उत्पादन में उपयोग किए जा रहे आलू की एक किस्म FL-2027, जिसे भारत में FC5 के नाम से पहचाना जाता है, के कथित कॉपीराइट के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए अदालत में केस दर्ज कराया है. इसके तहत प्रति किसान करीब 1 करोड़ रुपये के मुआवजे का दावा किया गया है. सुनवाई के दौरान पेप्सिको ने सलाह दी कि किसान ये लिखित रूप से कहें कि वे कंपनी की इजाजत के बिना इस फसल को नहीं उगाएंगे, या तो वे बाय बैक सिस्टम पर हस्ताक्षर करें. इसके तहत उन्हें फसल के बीज कंपनी से खरीदने होंगे और फसल की उपज सिर्फ कंपनी को बेचनी होगी.

इसे हम पेप्सिको द्वारा भारत के कुछ किसानों की जगह किसानी अर्थात् कृषि पर हमला इसलिये मान रहे हैं क्योंकि यदि पेप्सिको कंपनी यह केस जीत जाती है तो भारत का कोई भी किसान आलू की इस किस्म को उगा नहीं सकेगा. यदि उगाएगा तो केवल मात्र इसे पेप्सिको कंपनी को ही बेचना पड़ेगा. जाहिर है कि जब कंपनी अपने एकाधिकार के आलू को खरीदेगी तो उसकी कीमत भी वही तय करेगी. मामला कुलमिलाकर, कृषि उत्पाद पर अपनी बपौती साबित करने का है.

लोकसभा चुनाव के शोर में अभी तक किसी राजनीतिक दल द्वारा इस मुद्दे को न ही उछाला गया है और न ही इसके विरोध में किसी ने आवाज बुलंद की है. सवाल किया जाना चाहिये कि क्या नई सरकार चुनने के बीच एक बहुराष्ट्रीय विदेशी कंपनी द्वारा देश की किसानी पर किए जा रहे हमले की कोई अहमियत नहीं है? जब पड़ोसी देश हमारी सीमा में घुसकर आतंक फैलाता है तो सेना उसका विरोध करती है और तमाम राजनीतिक दल सेना का समर्थन करते हैं. ऐसे में पेप्सिको कंपनी के इस हमले का अखिल भारतीय किसान सभा और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध किए जाने का भी सभी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन किया जाना चाहिये. यहां पर यह कहना गलत ना होगा कि पेप्सिको का विरोध एक मापदंड का काम करेगा जो साबित करेगा कि कौन कितना देशभक्त है.

गौरतलब है कि पेप्सिको इंडिया कंपनी ने प्रोटेक्‍शन ऑफ प्‍लांट वैराइटी एंड फार्मर्स राइट एक्‍ट, 2001 के तहत FL 2027 किस्‍म को पंजीकृत कराया था. पेप्सिको इंडिया होल्डिंग कंपनी को आलू की इस किस्म पर 1 फरवरी 2016 से 31 जनवरी 2031 तक का पंजीयन मिला हुआ है. अब कंपनी ने ये आरोप लगाया है कि ये किसान पंजाब के किसानों से बीज खरीदकर अवैध तरीके से इसकी खेती कर रहे थे. पंजाब के किसानों के पास इस किस्म के आलू उगाने का लाइसेंस है और पेप्सिको के साथ उनका समझौता है. ऐसे में किसानों द्वारा इसे उगाकर बेचना गैरकानूनी है.

पेटेंट तथा कापीराइट का मामला तकनीकी कानूनी मामला होता है जिसे समझना आसान नहीं होता है. हां, यह बात आसानी से समझ में आ रही है कि एक विदेशी कंपनी हमारे देश के किसानों को अपना गुलाम बनाने पर तुली हुई है. सबसे पहले हम कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर इस खबर को पूरी तरह से जान लेते हैं और उसके बाद अपने मुद्दे पर आते हैं.

बीबीसी हिन्दी समाचार के अनुसार:

1) कंपनी का कहना है कि बिना इजाजत लिए किसान इस किस्म के आलू की खेती नहीं कर सकते. कंपनी ने इस किस्म के आलू की बिना इजाजत बुआई करने वाले किसानों पर भारत में केस दर्ज किया है.

2) किसान संगठन का कहना है कि पेप्सिको ने किसानों पर जो केस किए हैं वो गलत हैं. 190 से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने एक पत्र केंद्र और राज्य सरकार को भेजा है जिसमें कहा गया है कि सरकार, अंतरराष्ट्रीय कंपनी पेप्सिको से केस वापस लेने के लिए कहे. उसमें कहा गया है कि पेप्सिको पीपीवी ऐंड एफआरए की धारा 64 की अपने तरीके से व्याख्या कर रही है. इस क़ानून की धारा 64 के मुताबिक रजिस्टर की हुई किस्म को बिना इजाजत बेचा जाए, आयात-निर्यात किया जाए या फिर उत्पादन किया जाए तो उसे उल्लंघन माना जायेगा. हालांकि इसी कानून की धारा 39(4) में कहा गया है कि इस कानून में मौजूद प्रावधानों के बावजूद किसान बीज की बचत कर सकता है, बीज का उपयोग कर सकता है, उसकी दोबारा बुआई कर सकता है, आदान-प्रदान कर सकता है, साझा कर सकता है या इससे पैदा हुई फसल को बेच भी सकता है.

3) भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अंबू भाई पटेल कहते हैं, “पेप्सिको इंडिया कि एफएल 2027 किस्म के आलू पर विशिष्ट अधिकार की दलील टिक नहीं सकती. वो कहते हैं किसान कई जगह से बीज लाता है, ऐसे में कंपनी किस तरह से उन पर करोड़ों का दावा कर सकती है और ये कैसे कह सकती है कि छोटे-छोटे किसान उसके लिए खतरा हैं.”

4) वहीं जतिन ट्रस्ट के कपिल शाह कहते हैं, “भारत में पीपीवी ऐंड एफआरए यानी ‘प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेराइटी ऐंड फार्मर्स राइट एक्ट’ के तहत किसानों को बीज बोने को लेकर सुरक्षा मिली हुई है.”

5) गुजरात में किसानों के एक संगठन खेड़ूत एकता मंच से जुड़े सागर रबारी कहते हैं कि कंपनी मोनोपॉली और किसानों को डराने धमकाने के लिए यह सब कर रही है.

6) कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने इसकी पुष्टि की. वो कहते हैं कि इसकी ब्रांडिंग कर के इसे बेच नहीं सकते हैं.

अब हम इसके कानूनी पहलू पर आ जाते हैं. पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के 39(4) के अनुसार a farmer shall be deemed to be entitled to save, use, sow resow, exchange, share or sell his farm produce including seed of a variety protected under this Act in the same manner as he was entitled before the coming into force of this Act:

Provided that the farmer shall not be entitled to sell branded seed of a variety protected under this Act.

Explanation.—For the purpose of clause (iv), “branded seed” means any seed put in a package or any other container and labelled in a manner indicating that such seed is of a variety protected under this Act.

बता दें कि वैश्वीकरण के युग में कॉर्पोरेट्स ने अपनी संपत्ति को बढ़ाने के लिए देखा कि बौद्धिक संपदा दुनिया की सबसे महंगी संपदा है. यदि किसी तरह से इस पर कोई वैश्विक कानून बनाकर एकाधिकार पाया जा सके तो घर बैठे दुनियाभर की बौद्धिक संपदा पर नियंत्रण हासिल किया जा सकता है. हालांकि, वैश्वीकरण के पहले से ही विभिन्न देशों में अपनी देश की जरूरत के अनुसार बौद्धिक संपदा की रक्षा के लिये पेटेंट कानून था. लेकिन पहली बार डंकल प्रस्ताव के माध्यम से इसे एक वैश्विक जामा पहनाने की कोशिश की गई.

जानकारों का मानना है कि डंकल प्रस्ताव में कृषि, पेटेंट और सेवा को शामिल करवाने के पीछे अमरीकी महाकाय दवा कंपनी फाइजर और केमिकल एवं बीज कंपनी मोनसांटो का ही हाथ था. उन्होंने ही तत्कालीन गॉट के मुखिया आर्थर डंकल के माध्यम से सभी देशों पर दबाव बनाया कि वे इस समझौते पर हस्ताक्षर करके विश्व-व्यापार-समझौते में शामिल हो जाएं. इतिहास गवाह है कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव के कारण जिसमें विकसित देशों का बोलबाला है भारत जैसे कई देशों ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए थे.

इस विश्व-व्यापार-समझौते के अनुसार साल 2005 में भारतीय पेटेंट कानून 1970 में संशोधन करना पड़ा था. उस समय TRIPS समझौते के लचीलेपन का फायदा उठाते हुए भारतीय कानून में संशोधन किया गया था. जिसके तहत जीवित जीव और पौधों को पेटेंट कानून के दायरे से बाहर कर दिया गया था. वामपंथी सासंदों के दबाव के कारण General Agreement on Trade & Tariff अर्थात् GATT की धारा Trade Related Intelaclual Property Rights अर्थात् TRIPS की उपधारा 27.3 b में उपलब्ध लचीलेपन का फायदा उठाया गया था. उसी के साथ Plant Variety Protection and Farmers Rights Act में कृषकों के लिये छूट दी गई थी कि वे “a farmer shall be deemed to be entitled to save, use, sow, resow, exchange, share or sell his farm produce including seed of a variety protected under this Act in the same manner as he was entitled before the coming into force of this Act.”

अब आपकी समझ में आने लगा होगा कि मामले को केवल कानूनी बहसों और कोर्ट पर नहीं छोड़ा जा सकता है. यह पूरी तरह से हमारे देश की किसानी पर हमला है. इसलिए जो लोग किसानों की आय दुगनी करने का दावा करते हैं या जो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलवाने की वकालत करते हैं उन्हें भी विदेशी कंपनी पेप्सिकों के इस गैर-मानवीय कदम का विरोध करना चाहिए.

यदि भारत जैसे विकासशील देशों की कृषि अर्थव्यवस्था को बचाना है तो दूरगामी रूप से विश्व-व्यापार-संगठन को खारिज करने के लिए एकबद्ध होना पड़ेगा और तात्कालिक तौर पर पेप्सिको की इस साजिश को खारिज करना पड़ेगा.

जनता भी इसमें योगदान दे सकती है पेप्सिको के उत्पादों का बहिष्कार करके.


प्रसंगवश