मध्य प्रदेश डायरी: दोनों दलों में नसीहतों और खींचतान का दौर


digvijay singh gives suggestion to their fellow leader

 

दिग्विजय की नसीहत, सरकार की सहायता

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कार्यकर्ताओं को दी गई नसीहत चर्चा में है. दिग्विजय की कार्यकर्ताओं को सीख परोक्ष रूप से सरकार की परेशानी दूर कर रही है. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को नसीहत दी है कि वे फिजूलखर्ची पर नियंत्रण लगाएं. उनके कार्यालय से जारी नोट में लिखा है कि उनके प्रवास के दौरान कार्यकर्ता ढोल-धमाकों, पटाखों और फूल मालाओं से परहेज करें. ऐसा करने से अपव्यय होता है . इस कारण कार्यकर्ताओं को इससे बचने की सलाह दी गई है. उन्होंने कहा कि सादगी से मुलाकात हो तो ज्यादा अच्छा होगा. धन की कमी झेल रही प्रदेश सरकार के लिए यह नसीहत मार्गदर्शक सिद्धांत की तरह है कि किस तरह संसाधनों का बुद्धिमत्ता से प्रयोग कर वादे पूरे किए जा सकते हैं और फिजूलखर्ची रोक कर बजट का सही उपयोग किया जा सकता है.

महाकौशल में कैबिनेट मीटिंग, तनाव में बीजेपी

मध्य प्रदेश का महाकौशल क्षेत्र राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. मुख्यमंत्री कमलनाथ और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष व सांसद राकेश सिंह इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मंसूबों पर पानी फेरते हुए कांग्रेस ने इस क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया. पार्टी इस प्रदर्शन को लोकसभा चुनाव में दोहराना चाहती है. यही कारण है कि इस क्षेत्र के प्रतिनिधि राज्यसभा सदस्य विवेक तंखा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा कि वे राजधानी के बाहर अपनी कैबिनेट की बैठक महाकौशल के जबलपुर में करें. वे क्षेत्र को हुई राजनीतिक-आर्थिक हानि की भरपाई चाहते हैं. तंखा के आग्रह पर कमलनाथ जबलपुर में कैबिनेट बैठक करने जा रहे हैं. बैठक में क्षेत्र के विकास के निर्णय ले कर 800 करोड़ से अधिक के विकास कार्य आरंभ करने की तैयारी की जा रही है. सरकार की इस सक्रियता ने बीजेपी खासकर प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह का तनाव बढ़ा दिया है. सिंह को न केवल अपनी सीट बचानी है बल्कि क्षेत्र में बीजेपी का वर्चस्व बरकरार रखना है. यही कारण है कि बीजेपी अपने चुनाव अभियान की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहली सभा जबलपुर में कर रही है. यह देखना दिलचस्प होगा कि 15 साल सत्ता में रहने के बाद भी महाकौशल का चेहरा न बदल पाने वाली बीजेपी अब कैसे सत्ताधारी कांग्रेस का मुकाबला कर पायेगी.

नेता प्रतिपक्ष का पहला संघर्ष अपनी पार्टी में

मध्य प्रदेश विधानसभा में बीजेपी 109 विधायकों के साथ ‘बड़े’ विपक्ष की भूमिका में है. कमलनाथ सरकार को घेरने में विधायकों का संख्याबल नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव की ताकत हो सकता हैं, मगर, पार्टी की अंदरूनी खींचतान के चलते सरकार से पहले नेता प्रतिपक्ष को अपने ही दल भाजपा के कद्दावर नेताओं से ‘निपटना’ है. भार्गव कम सीनियर नेता नहीं हैं लेकिन उनके साथ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, राजेन्द्र शुक्ल, भूपेंद्र सिंह जैसे नेता सदन में होते हैं. ये सभी नेता प्रतिपक्ष के प्रमुख दावेदार थे. नरोत्तम मिश्रा का नाम अंतिम समय में पीछे कर पार्टी ने भार्गव को नेता प्रतिपक्ष चुना. इस निर्णय पर मिश्रा की कसक पिछले सत्र में दिखाई दी थी जब वे सरकार के विरोध के हर मौके पर खामोश ही रहे. एक तरफ मिश्रा जैसा ‘हमलावर’ नेता सदन में खामोश रहा तो शिवराज की अतिसक्रियता भार्गव के लिए चुनौती है. शिवराज सदन के अंदर और बाहर समान रूप से सक्रिय हैं. अगले हफ्ते शुरू हो रहे बजट सत्र में भार्गव को अपने दल के नेताओं की इस अरुचि और अतिसक्रियता से उबर कर अपना सिक्का जमाना होगा.

कमलनाथ लगाएंगे मंत्रियों की ‘क्लास’

मुख्यमंत्री कमलनाथ मंत्रियों के मुखिया तो हैं ही मगर जल्द वे अपने मंत्रियों की ‘क्लास’ लगाने वाले हैं. इस क्लास में वे पहली बार मंत्री बनने वाले विधायकों को प्रशासन के गुर सिखाएंगे. उन्हें बताएंगे कि कैसे नोटशीट लिखनी है, नीतियों व योजनाओं की समीक्षा कैसे की जानी है, वचनपत्र के बिंदुओं को बिना बजट किस तरह पूरा करना है. यह कवायद इसलिए कि मंत्रियों के बयानों और कुछ निर्णयों से सरकार की किरकिरी हुई तथा उसे बैकफुट पर आना पड़ा था. ऐसी घटनाओं के दोहराव से बचाने के लिए कमलनाथ ने आचरण संहिता भी जारी की है. इसमें बताया गया है कि मंत्री क्या करें और क्या न करें. अब क्लास में उन्हें प्रशासनिक रूप से दक्ष बनाया जाएगा.


प्रसंगवश