क्या सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ों के पूर्वज थे?


indus valley settlers had distinct origin

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लगभग साढ़े चार हजार साल पहले के इतिहास को लेकर चली आ रही बहस को हाल ही में हुए एक वैज्ञानिक शोध ने नई दिशा देने का काम किया है. भारत के प्राचीन इतिहास में हड़प्पा काल और वैदिक काल को लेकर अब तक जो बातें सामने आई हैं, उन पर इतिहासकार एकमत होते नहीं दिखाई दिए हैं. मुख्य तौर पर ये कुछ सवाल हैं, जिनके जबाव तलाशने की कोशिश इतिहासकार अब भी कर रहे हैं.

भारत के मूल निवासी कौन हैं?

आर्य कौन हैं ?

आर्य कहां से आए हैं?

 क्या वैदिक संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता की संस्कृति से मिलती-जुलती है?

क्या द्रविड़ समुदाय की संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता की संस्कृति से मिलती-जुलती है?
 

इन तमाम सवालों को लेकर बहस लंबे अर्से से चली आ रही है. हाल ही में हुआ एक अनुवांशिक शोध हमें इन तमाम सवालों के जवाब तक पहुंचाने का काम कर सकता है. दिल्ली से 170 किलोमीटर दूर हरियाणा के हिसार में राखीगढ़ी की हड़प्पा साइट में मिले नर कंकाल से प्राप्त डीएनए ने इस बहस को नया मोड़ दिया है.

पुणे के डेक्कन कॉलेज ऑफ आर्कियोलॉजी विभाग के प्रमुख वसंत शिंदे की अगुवाई में साल 2015 से राखीगढ़ी साइट पर खुदाई का काम चल रहा है. करीब 900 एकड़ में फैली राखीगढ़ी साइट भारत में सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी साइट है. इसकी खुदाई के दौरान वसंत शिंदे की टीम को पांच हजार साल से भी पुराना कंकाल मिला, यह कंकाल आज के मानव शरीर के मुकाबले काफी बड़ा है.

सिंधु घाटी सभ्यता को लेकर चली आ रही बहसों में एक से ज्यादा पक्ष सिंधु घाटी सभ्यता को खुद से जोड़कर देखते रहे हैं. इसमें द्रविड़ों का दावा रहा है कि सिंधु सभ्यता काल में बोली जाने वाली भाषा उनकी भाषा से मिलती है, इसलिए सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ों के पूर्वज थे. कुछ का दावा है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग आज की मौजूदा मुंडा आदिवासियों के पूर्वज थे. इसके विपरीत वैदिक काल के आर्यों का दावा रहा है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग उनके पूर्वज थे क्योंकि उनकी भाषा संस्कृत भाषा से मिलती-जुलती थी.

बाल गंगाधर तिलक, दयानन्द सरस्वती, माधवराव सदाशिव गोलवलकर और स्वामी विवेकानन्द ये तमाम सनातनी लोग आर्यों के ही भारत के मूलनिवासी होने के पक्ष में रहे हैं. इस पर दयानन्द सरस्वती का कहना था कि आर्यन डाउन ऑफ क्रिएशन के बाद  तिब्बत से आए थे. बाल गंगाधर तिलक का मत था कि आर्य 8,000 ई.पू. में आर्कटिक सर्कल से आए थे. वहीं गोलवलकर ने भी तिलक के तर्क से सहमति जताई थी. स्वामी विवेकानन्द का मत था कि आर्य भारत का ही हिस्सा रहे अफगानिस्तान से आए थे. इस तरह से देखा जाए तो खुद को आर्य कहने वालों के मतों में भी परस्पर मतभेद रहे हैं.

राखीगढ़ी मे मिले डीएनए सैम्पल का लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलिओबॉटनी के आनुवांशिकी वैज्ञानिक नीरज राय की टीम ने अध्ययन किया. राय की टीम ने पुष्टि की कि राखीगढ़ी में मिले कंकाल का डीएनए आर्यों के  जीन R1a1 से नहीं मिलता है. राखीगढ़ी से मिले कंकाल के सैंपल में जो डीएनए पाया गया है, वह भारत में रहने वाले आर्यों के जीन से नहीं मिलता है. आर्यों के जीन का ग्रुप R1a1 है, परंतु कंकाल के डीएनए का ग्रुप I1144 है. राखीगढ़ी साइट से मिले कंकाल के डीएनए का  I1144 ग्रुप दक्षिण भारत के द्रविड़ों के जीन से मिलता-जुलता है.

आर्य खुद को भारत का मूलनिवासी होने का दावा करते रहे हैं. ऐसे में यह शोध भारत की राजनीति के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण हो जाता है. अनुवांशिक शोध के दौरान कंकाल के डीएनए का आर्यों के जीन ग्रुप से मेल न खाना हिन्दुत्व की राजनीति करने वालों के लिए बड़ा झटका हो सकता है. उनका दावा रहा है कि ऋग वैदिक काल का संबंध हड़प्पा कालीन अवशेषों से है. परंतु यह वैज्ञानिक शोध इस निष्कर्ष पर पहुंचता दिख रहा है कि सिंधु घाटी सभ्यता वैदिक काल यानी हिन्दू सभ्यता की संस्कृति से संबंध नहीं रखती है.

 भारत में आर्यों के आने या उनके यहां के मूल निवासी होने के बारे में ‘आर्यन इनवेजन थ्योरी’ का जिक्र होता रहा है. इस थ्योरी के अनुसार आर्य घुम्मकड़ थे जिन्होनें सिंधु घाटी के लोगों पर आक्रमण कर यहां कब्जा कर किया. इस थ्योरी के अनुसार ही आर्य अपने साथ संस्कृत भाषा और वर्ण व्यवस्था की प्रणाली लेकर आए. इस थ्योरी का आधार भारतीय-यूरोपीय भाषाएं हैं, जिनमें संस्कृत और लैटिन से पैदा होने वाली भाषाओं में समानताएं पाई जाती हैं. लेकिन इतिहासकार रोमिला थापर का कहना है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शहरी और शिक्षित थे वहीं वैदिक काल के लोग कृषि आधारित ग्रामीण थे, जिनमें न तो शहरीकरण जैसा कुछ था और ना ही उनके पास लिखने के लिए कोई लिपि थी.

मार्च 2018 में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में शोध के बाद  ‘द जिनोमिक फॉर्मेशन ऑफ साउथ एंड सेन्ट्रल एशिया’ नाम से छपे पेपर के अनुसार, भारत की जनसंख्या दो पुरानी तरह की जनसंख्याओं का मिश्रण है, जिसमें  ASI (एन्सेस्ट्रल साउथ इंडियन) और ANI (एन्सेस्ट्रल नॉर्थ इंडियन) शामिल हैं. शोध के अनुसार, दक्षिण एशिया में बाहर से दो पलायन हुये, पहला पलायन नौ हजार साल पहले ईरानी किसानों का हुआ जबकि दूसरा पलायन स्टेप्स पेस्टोरेलिस्ट (Steppe Pastoralists) का लगभग पांच हजार साल पहले हुआ था. आगे चलकर यह ईरानी किसानों के पलायन की आबादी दक्षिण एशिया में पहले से मौजूद आबादी के साथ घुलमिल गई.

दूसरा पलायन यानी स्टेप्स  पेस्टोरेलिस्ट लोगों का पलायन लगभग पांच हजार साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के साथ हुआ था, जिसको  एएनआई यानी एन्सेस्ट्रल नॉर्थ इंडियन आबादी  के नाम से जाना गया. दक्षिण एशिया में इंडो-यूरोपियन भाषा का मुख्य कारण स्टेप्स पेस्टोरेलिस्ट का पलायन माना जाता है. इसके बाद सिंधु के आस-पास रहने वाले लोग भी दक्षिण की ओर पलायन कर गए और आगे चलकर वहां के स्थानीय शिकारी निवासियों के साथ घुल-मिल गए जो पहले से वहां रहते थे. इसको एएसआई यानी एन्सेस्ट्रल साउथ इंडियन आबादी के नाम से जाना गया. अधिकांश भारतीय आज इन्ही दो आबादी यानी एएनआई और एएसआई की आबादी का मिश्रण हैं.

R1a1 ग्रुप इंडो-यूरोपियन भाषा बोलने वाले यूरेशियनों से मिलता है. मध्य और पश्चिमी यूरोप में रहने वाले 40 से 60 फीसदी लोगों में R1a1 पाया जाता है, वहीं उत्तर भारत के उच्च वर्ग में यह ग्रुप 17 फीसदी तक और आदिवासियों में और उत्तर-पूर्व के लोगों में R1a1 ग्रुप नाम मात्र का पाया गया. इससे साबित होता है कि हड़प्पा में पाए गए कंकाल के डीएनए उत्तर भारत की अधिकांश जनसंख्या से नहीं मिलता है. खासकर, खुद को आर्य कहने वालों से भी यह नहीं मिलता है. इसके उलट यह दक्षिण भारत के द्रविड़ों के डीएनए के बहुत करीब है. 

यहां इस शोध से यह निष्कर्ष सामने आता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों पर दक्षिण भारत के द्रविड़ों का उनके पूर्वज होने का दावा मजबूत है.  


प्रसंगवश