दिल्ली विश्वविद्यालय से विलुप्त होती हिंदी!


ABVP occupies three posts in DUSU election, one seat in NSUI's account

 

दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले का दौर शुरू हो चुका है. 22 जून नामांकन के लिए अंतिम तिथि थी. इस बार भी डीयू में 2.5 लाख से अधिक नामांकन हुए हैं. अब विद्यार्थियों को कट ऑफ लिस्ट का बेसब्री से इंतजार है. डीयू की वेबसाइट से मिली जानकारी के मुताबिक पहली कट ऑफ जारी करने की तिथि प्रशासन की ओर से 28 जून निर्धारित की गई है.

डीयू छात्रों का पसंदीदा विश्वविद्यालय रहा है. इसके लिए वो 12वीं में कड़ी मेहनत कर 90 फीसदी से अधिक अंक हासिल करता है. लेकिन जब एक हिंदी माध्यम का विद्यार्थी दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेता है तो वह पाता है कि यहां ना तो शिक्षा हिंदी माध्यम मे होती है न ही कोई पुस्तक हिंदी में लिखी गई मिलती है. जो किताबें मिलती भी हैं वो अधिकतर अंग्रेजी से हिंदी में अनुवादित की गईं होती हैं, और उनका अनुवाद भी कुछ इस प्रकार किया गया होता है कि उन पुस्तकों को समझ पाना जैसे तरबूज में से बीज निकालना.

हिन्दू कॉलेज के दर्शनशास्त्र के एक विद्यार्थी ने बताया कि “जैसे ही मैंने नॉर्थ कैंपस में कदम रखा तो देखा यहां हर दूसरा छात्र एकदम फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है. मैंने भी 12 वीं तक अंग्रेजी पढ़ी हैं लेकिन यहां माहौल कुछ और ही था. कक्षा में सभी लेक्चर अंग्रेजी में ही होते थे और पुस्तकालय में हर पांच अंग्रेजी में लिखी पुस्तकों की अलमारी के मुकाबले एक हिंदी की पुस्तकों वाली अलमारी मिलती हैं. विज्ञान के क्षेत्र की तो बात ही छोड़ दें, यहां समाजशास्त्र से लेकर इतिहास तक की किताबें हिंदी में मिलना जैसे दुर्लभ ही है, जो मिलती भी हैं वो अंग्रेजी से अनुवादित ही होती हैं.”

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद(यूपी बोर्ड) से डीयू में पढ़ने आई एक छात्रा ने बताया कि “डीयू में हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य की ही कक्षाएं सिर्फ हिंदी माध्यम में होती हैं. बाकी हर विषय के लिए हम यह कह सकते हैं कि आपको हिंदी आए ना आए लेकिन अंग्रेजी जरूर आनी चाहिए. हमें 12वीं से ही बताना शुरू कर दिया जाता है कि आगे आपको सब कुछ अंग्रेजी में ही पढ़ना पड़ेगा. स्कूल तक जिसे आहार नली पढ़ते रहे आज उसे एलिमेंट्री कैनाल पढ़नी पड़ती है. 12वीं तक हमने हिंदी माध्यम में ही विज्ञान विषय पढ़ा था, लेकिन अब यहां हमसे उन प्रश्नों के उत्तर अच्छी तरह से आते हुए भी छूट जाते हैं क्योंकि हमें वही नाम समझ में नहीं आ पाते.”

रामानुजन कॉलेज के कॉमर्स से स्नातक के एक छात्र ने भी बताया कि “पहले लेक्चर बाइलिंगुअल हुआ करते थे, लेकिन अब पांचवा सेमेस्टर आते आते वो पूरी तरह से अंग्रेजी में बदल चुके हैं.”

वैसे ही यूपी बोर्ड से 12वीं पास करने वाले आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज के विज्ञान के एक छात्र ने भी पूरी तरह अंग्रेजी के प्रयोग की बात कही.

डीयू में अधिकतर विद्यार्थी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदी भाषी राज्यों से आते हैं. राज्य बोर्ड के अंतर्गत शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी या जिन्होंने शुरुआत से ही हिंदी माध्यम में ही पढ़ाई की होती है उन्हें एकदम से सबकुछ अंग्रेजी में समझना बहुत कठिन होता हैं. डीयू में कई प्रकार की सांस्कृतिक सोसाइटी होती हैं जहां गायन से नृत्य तक में अंग्रेजी गानों का बोलबाला रहता है, जिस कारण कई विद्यार्थी इन कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं ले पाते हैं.

कई विद्यार्थियों के मन में यह डर बैठ जाता है कि उन्हे सिर्फ हिंदी आती है, इस वजह से वह उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाएंगे. विद्यार्थी को प्रशासन और शिक्षकों की तरफ से भी हीन भावना का एहसास होता है क्योंकि अधिकतर स्टाफ अंग्रेजी भाषी ही होते हैं. यही नहीं, अंग्रेजी भाषी विद्यार्थिओं के द्वारा सरकारी विद्यालयों से पढ़कर आने वाले गरीब विद्यार्थिओं का उपहास किया जाता है. उनके साथ कटाक्षपूर्ण और व्यंगात्मक भाषा का प्रयोग किया जाता है.

कई छात्र जो हिंदी भाषी क्षेत्र से 90 फीसदी से 99 फीसदी तक अंक लाकर डीयू में दाखिला लेते हैं, यहां आकर उनके अंक कुछ इस प्रकार लुढ़क जाते हैं कि उनके उत्तीर्ण होने तक के लाले पड़ जाते हैं. ऐसा प्रतीत होता है जैसे हिंदी भाषा डीयू से विलुप्त होने की कगार पर आ चुकी है. क्योंकि अब इस वजह से अधिकतर हिंदी भाषी विद्यार्थी डीयू में प्रवेश नहीं लेते और जो लेते है उनमे से अधिकतर अनुत्तीर्ण हो जाते हैं. जिस कारण उनमें हीन भावना आ जाती है. प्रशासन और शिक्षकों की तरफ से भी उन्हें कोई सहयोग नहीं मिलता है.

जानकार मानते हैं कि समस्या से निजात पाने के लिए डीयू में हिंदी और अंग्रेजी दोनों माध्यमों में कक्षाएं चलनी चाहिए और अधिक से अधिक पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध होनी चाहिए और उनमें आम बोलचाल की भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग होना चाहिए जिससे वह सभी क्षेत्रों से आने वाले विद्यार्थिओं को आसानी से समझ में आ सके.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के छात्र हैं.)


प्रसंगवश