गुजरात से लेकर कैराना तक बीजेपी की ‘यूज एंड थ्रो’ पॉलिसी!


electoral bonds benefited bjp the most among all parties

 

क्या आपको कैराना याद है? पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले में स्थित वही कैराना जहां के पूर्व सांसद और बीजेपी के फायरब्रांड नेता हुकुम सिंह ने हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उठाया था.

जून 2016 में बीजेपी के सांसद हुकुम सिंह ने संसद में 346 हिंदुओं की एक सूची पेश की थी. हुकुम सिंह ने आरोप लगाया था कि इन 346 हिंदुओं ने मुसलमानों की गुंडागर्दी से डरकर कैराना छोड़ दिया.

हुकुम सिंह के इस आरोप के बाद बीजेपी ने इसे चुनावी मुद्दा बना लिया. बीजेपी के नेता लगातार कैराना का नाम लेकर सांप्रदायिक माहौल बनाते रहे. अमित शाह ने कहा कि कैराना घटनाक्रम हिंदुओं के लिए आंख खोलने वाला है. इसके बाद अमित शाह ने इलाहाबाद की एक रैली में कहा कि उत्तर प्रदेश को कैराना से सबक सीखना चाहिए.

अलीगढ़ से बीजेपी के सांसद सतीश गौतम ने कहा कि हमें अभी और कैराना खोजने होंगे. वहीं आदित्यनाथ ने कहा कि कैराना में परिस्थितियां 1990 के कश्मीर जैसी हो गई हैं.

बीजेपी के नेता जब इस मुद्दे पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर रहे थे तब द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस और हिंदुस्तान टाइम्स ने कैराना जाकर उनके इन दावों को ध्वस्त कर दिया. इन अखबारों ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कैराना से हिंदुओं के जाने की वजह मुसलमानों की सांप्रदायिक गुंडागर्दी नहीं, बल्कि कुछ और है. इन अखबारों ने बताया कि हुकुम सिंह ने जो लिस्ट दी है, उनमें से ज्यादातर लोग बेहतर सुविधाओं और रोजगार के लिए कैराना छोड़कर गए हैं. इस लिस्ट के कई लोगों की तो मौत भी हो चुकी है. अखबारों ने बताया कि सिर्फ हिंदू ही नहीं मुसलमान भी कैराना छोड़कर दूसरी जगहों पर गए हैं.

अखबारों की ये जांच सही भी निकली. वो इस तरह कि जब कैराना में विधानसभा के चुनाव हो गए, तब हुकुम सिंह ने इस मुद्दे पर पलटी मारते हुए कहा कि कैराना से लोगों की पलायन की वजह सांप्रदायिक ना होकर कानून-व्यवस्था से जुड़ी है.

खैर, बीजेपी ने 2017 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव दो तिहाई बहुमत से जीता. कैराना ने बीजेपी के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण एजेंडे को मजबूत आधार दिया. इसी आधार पर नरेंद्र मोदी ने श्मशान-कब्रिस्तान की राजनीति की.

फरवरी 2018 में बीजेपी सांसद और 2013 मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी हुकुम सिंह की मौत हो गई. उनकी मौत के बाद कैराना में मई में उपचुनाव हुए. बीजेपी ने अपनी तरफ से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को खड़ा किया. उनके खिलाफ खड़ी हुईं तबस्सुम हसन. तबस्सुम सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल की संयुक्त उम्मीदवार थीं. उपचुनाव में तबस्सुम ने मृगांका को हरा दिया. इससे पहले विधानसभा चुनाव में भी मृगांका तबस्सुम हसन के बेटे से हार गई थीं.

कैराना की इस कहानी का जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कैराना से मृगांका सिंह की टिकट काट दी है. इसके साथ अब कहा जा रहा है कि कैराना में हुकुम सिंह के परिवार की राजनीति पर अब पूर्ण विराम लग गया है.

कहा जा रहा है कि बीजेपी ने अपनी जानी पहचानी रणनीति के तहत हुकुम सिंह का प्रयोग करने के बाद उनकी बेटी को बिल्कुल उसी तरह निकाल दिया है, जिस तरह दूध के ग्लास से मक्खी को निकाल दिया जाता है.

बीजेपी की अपने कट्टरपंथी नेताओं की वक्त-बेवक्त इस्तेमाल करने की नीति किसी से छिपी नहीं है. कई बार उसने ऐसा किया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण गुजरात नरसंहार है.

गुजरात नरसंहार में संघ और बीजेपी ने तो पहले युवाओं का सांप्रदायिक हिंसा फैलाने में प्रयोग किया और फिर उन्हें जेलों में सड़ने के लिए छोड़ दिया. सांप्रदायिक हिंसा फैलाने में संघ-बीजेपी के हाथों दुरुपयोग होने वाले इन युवाओं में एक बड़ी संख्या में पटेल समुदाय से आते हैं.

बीते दिनों गुजरात में पटेलों के युवा नेता के रूप में उभरे हार्दिक पटेल ने इन युवाओं को रिहा करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को पत्र भी लिखा.

हार्दिक पटेल ने अपने इस पत्र के साथ एक लिस्ट भी भेजी. इस लिस्ट में पटेल समुदाय के ऐसे 102 लोगों के नाम थे, जिन्हें 2002 के गुजरात नरसंहार के अलग-अलग मामलों में उम्रकैद की सजा मिली थी.

हार्दिक ने अपने पत्र में लिखा, “सब जानते हैं कि 2002 में हुए गुजरात दंगो का फायदा उठाकर पहले नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने और बाद में देश के प्रधानमंत्री.”

हार्दिक ने आगे लिखा, “बहुत से पाटीदारों को गुजरात दंगो से जुड़े मामलों में दोषी ठहराया गया है. इनकी लिस्ट मैंने दी है. ये सभी लोग जेलों में सड़ रहे हैं. मोदी अब देश के प्रधानमंत्री हैं, वे अब राष्ट्रपति की सहायता से इन लोगों को जेलों से रिहा करवा सकते हैं.”

हार्दिक ने पत्र में आगे लिखा, “लेकिन मुझे पता है कि मोदी जी इन लोगों को रिहा नहीं करवाएंगे क्योंकि वे दुनिया के सामने खुद को एक सेक्युलर व्यक्ति के रूप में दिखाना चाहते हैं. मोदी जी ने गुजरातियों खासकर पटेलों का दुरुपयोग किया है.”

ठीक ऐसा ही बीजेपी ने राजस्थान के अपने बड़बोले नेता ज्ञानदेव अहूजा के साथ किया. जेएनयू प्रकरण से लेकर अलवर में गरीब और निर्दोष मुसलमानों की हत्या तक ज्ञानदेव अहूजा ने विवादास्पद बयान देकर खुद को फायरब्रांड नेता साबित करना चाहा. लेकिन जब पिछले साल राजस्थान विधानसभा के चुनाव हुए तो पार्टी ने उनका टिकट काट दिया.

टिकट कटने के बाद अहूजा ने पार्टी छोड़ दी. अहूजा ने कहा, “पार्टी ने मुझे टिकट ना दिए जाने का कोई संतुष्टिपूर्ण उत्तर नहीं दिया है. अपने परिवार और समर्थकों के दबाव की वजह से मैं पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं.”

अलवर में जब गोतस्करी के आरोप में रकबर खान को भीड़ ने मार दिया था तब ज्ञानदेव ने कहा था कि रकबर की मौत की वजह पुलिस है ना कि भीड़ में शामिल लोग.

अलवर में ही जब अप्रैल 2017 में पहलू खान को गोरक्षा दल के लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला तो अहूजा ने कहा, “हमें कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए. लेकिन गोतस्करी करने वाले पापी होते हैं. उनका अंजाम यही होना चाहिए और आगे भी उन्हें ऐसी ही सजा मिलेगी.”

यहां यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ज्ञानदेव अहूजा ने ये बयान राजस्थान विधानसभा में विधायक रहते हुए दिए. बीजेपी ने भी उनके इन बयानों से किनारा नहीं किया, उल्टे इनका प्रयोग सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने में ही किया.

ऐसा लगता है कि पार्टी के लिए ज्ञानदेव का काम पूरा हो चुका था और अब वो बीजेपी के लिए किसी काम के नहीं रह गए थे.


प्रसंगवश