विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम : कुंभ


Prayagraj Kumbh Biggest religious ceremony

 

उत्तर प्रदेश स्थित संगम नगरी प्रयागराज एक बार फिर विश्व के सबसे बड़े समागम प्रयागराज कुंभ 2019 मेले के लिए सज-धज कर तैयार हो चुकी है. कुंभ का आगाज़ मकर संक्रांति के दिन यानि 15 जनवरी से हो गया है. यह 49 दिन यानि 4 मार्च तक चलेगा.

इस बार यहां करीब 13 से 15 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद जताई जा रही है, वहीं करीब 10 लाख विदेशी पर्यटकों के भी शामिल होने की बात कही जा रही है. कुम्भ में स्नान की विशेष धार्मिक मान्यता भी है. यही वजह है कि हर आयु से करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल प्रयागराज,नासिक,उज्जैन और हरिद्वार में स्नान करते हैं.

देश के इस सबसे बड़े धार्मिक अनुष्ठान को यूनेस्को की भी मान्यता मिल चुकी है. बता दें कुंभ शब्द का अर्थ घट या घड़ा होता है, कुंभ का एक अर्थ ब्रह्माण्ड भी होता है.

कहां–कहां आयोजित होता है कुंभ

कुंभ का आयोजन देश के चार राज्यों प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में किया जाता है. प्रयागराज में कुंभ महोत्सव का आयोजन संगम तट पर किया जाता है, वहीं हरिद्वार में कुंभ गंगा के तट पर आयोजित होता है. नासिक में गोदावरी के तट पर इसका आयोजन होता है तो उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे कुंभ महोत्सव का आयोजन किया जाता है. इन नदियों के किनारे आयोजित होने वाले कुंभ मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के साथ-साथ विदेशी पर्यटक भी आते हैं और इस भव्य आयोजन के साक्षी बन भरपूर आनंद उठाते हैं. बता दें के प्रयागराज और हरिद्वार में प्रत्येक छह वर्ष में अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता हैं,वहीं नासिक और उज्जैन में प्रति बारह साल के अंतराल में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है.उज्जैन में होने वाला कुंभ ‘सिंहस्थ कुंभ’ के नाम से जाना जाता है.

पौराणिक मान्यता

कुंभ का इतिहास देवताओं और असुरों के बीच हुए समुंद्र मंथन से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है के समुंद्र मंथन के दौरान सागर से एक-एक कर चौदह रत्न निकले थे जिसमें आखिरी रत्न अमृत कुम्भ यानि अमृत से भरा कलश था. इस कलश को पाने के लिए दैत्य इसके पीछे भागे थे तो वहीं इस कलश की रक्षा के लिए देवताओं ने भी इसका पीछा किया. देवताओं और दैत्यों की लड़ाई के दौरान जिन-जिन जगहों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन,नासिक) और जिन-जिन तिथियों पर अमृत का कुंभ छलका, उन्हीं-उन्हीं स्थलों में उन्हीं तिथियों पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है. वहीं, धरती की जिन तीन नदियों में अमृत की बूंदे गिरीं थी, उन नदियों के नाम गंगा,गोदावरी और क्षिप्रा है. कथाओं के अनुसार, देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत पर अधिकार प्राप्त करने की यह लड़ाई बारह दिन तक चली थी. कहा जाता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के लिए एक वर्ष के बराबर होता है. इसलिए कुंभ भी बारह होते हैं. इनमें से 4 कुंभ धरती पर चार जगह गिरी अमृत बूंदों के स्थान पर कुंभ महोत्सव का आयोजन किया जाता है.

कुंभ में अखाड़ों का महत्व

कुंभ का आगाज़ अखाड़ो के साधु-संतों द्वारा होता है. मेले के पेशवाई करते शरीर पर भभूत लपेटे नागा साधु इन मेलों का प्रमुख आकर्षण माने जाते हैं. कुंभ में शामिल होने के लिए हर साल 13 अखाड़ों की पेशवाई निकाली जाती है. किन्नर अखाड़े में शामिल होने के बाद साल 2019 में इन अखाड़ों की संख्या 14 हो गई है. शाही स्नान से आगाज होकर लगभग 50 दिनों तक चलने वाले इस विशाल धार्मिक आयोजन में लगे हुए अखाड़ों से जुड़े साधु-संतो के हवन के मंत्रों की आवाज़ और अनहद नाद से पूरा माहौल पावन हो जाता है. वहीं, यहां आए पर्यटकों और लोगों के लिए यह आस्था का एक बड़ा केंद्र बनता है. कुंभ महोत्सव ही एक ऐसी जगह मानी जाती हैं जहां निर्वस्त्र रहकर हुंकार भरते, शरीर पर भभूत लपेटे नाचते–गाते, डमरू-ढपली बजाते हाथ में त्रिशूल लिए नागा साधु संतो के दुर्लभ दर्शन किए जा सकते हैं .

साल 2019 प्रयाग कुंभ में शामिल होने वाले 14 अखाड़ों के नाम हैं:-

श्रीनिरंजनी अखाड़ा, श्रीजूना अखाड़ा, श्रीमहानिर्वाण अखाड़ा, श्री अटल अखाड़ा, श्रीआह्वान अखाड़ा, श्रीआनंद अखाड़ा, पंचाग्नि आखाड़ा, श्री गोरखनाथ अखाड़ा, श्रीवैष्णव अखाड़ा, श्रीउदासीन अखाड़ा, श्री उदासीन नया अखाड़ा ,श्री निर्मल अखाड़ा, निर्मोही अखाड़े, किन्नर अखाड़ा. बता दें कि ये पहली बार है जब किन्नर अखाड़े को भी इन अखाड़ों में शामिल किया गया है. अब तक कुंभ में 13 अखाड़े शामिल होते थे.

जानिए, कुंभ मेले 2019 के पवित्र स्नान के खास दिन

मकर संक्रान्ति (15 जनवरी, 2019, पहला शाही स्नान)
पौष पूर्णिमा (21 जनवरी, 2019)
मौनी अमावस्या (4 फरवरी, 2019, मुख्य शाही स्नान, दूसरा शाही स्नान)
बसंत पंचमी (10 फरवरी 2019, तीसरा शाही स्नान)
माघी पूर्णिमा (19 फरवरी 2019)
महाशिवरात्रि (4 मार्च 2019)


प्रसंगवश