यूपी में किसानों की अनदेखी दूसरे चरण में बीजेपी को पड़ सकती है भारी


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दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटो पर चुनाव संपन्न हुए. इस चरण में भी बीजेपी को जबरदस्त टक्कर मिल रही है. आइए इस ओर जरा करीब से नजर डालते हैं.

नगीना लोकसभा सीट

दूसरे चरण में बीजेपी के लिए सबसे मुश्किल कोई सीट है तो वो नगीना ही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी उम्मीदवार को कुल पड़े वोट का 39 फीसदी मत मिला था, वहीं दूसरे स्थान पर रहे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को 29.22 फीसदी मत मिले थे. तीसरे स्थान पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को 26.6 फीसदी मत मिले थे.

लेकिन इस बार मंजर कुछ अलग है. इस बार सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे हैं. इस वजह से बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. इस लोकसभा क्षेत्र में गन्ने की खेती होती है. बीजेपी सरकार में गन्ने का भुगतान समय पर ना होने कारण किसानों में बीजेपी के खिलाफ आक्रोश है . बिजली की कीमत में बढ़ोतरी के कारण भी किसानों में आक्रोश है. इस आधार पर किसान वोट बैंक बीजेपी के खिलाफ जाता दिख रहा है .

फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट

फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय है. बीजेपी ने यहां जाट उम्मीदवार को उतारा है जिससे वो जाट मतदाताओं का रुख अपने पक्ष में कर सके. महागठबंधन की तरफ से श्रीभगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित को मैदान में उतारा है. गठबंधन को उम्मीद है कि इससे बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाई जा सकती है.

इसी सीट पर कांग्रेस से भी राज बब्बर के रूप में मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. 18 तारीख को हुई वोटिंग में सवर्ण जातियों के साथ-साथ पिछड़े वर्ग का कुछ वोटर बीजेपी के पक्ष में रहा वहीं दलित मतदाता गठबंधन के पक्ष में लामबंद दिखाई दिए. मुस्लिम मतदाताओं का विभाजन कांग्रेस और महागठबंधन के बीच हुआ है. इसका फायदा कुछ हद तक बीजेपी को मिलता दिख रहा है.

वहीं राज बब्बर ने भी हर वर्ग में वोटों की सेंधमारी की है जिस कारण वह भी मुकाबले में बने हुए है. यहां पर त्रिकोणीय मुकाबले में कौन बाजी मार जाए, ये कहना अभी जल्दबाजी होगी.

इसके अलावा इस क्षेत्र में आलू की फसल का उचित दाम ना मिलने के कारण किसानों की हालत बहुत दयनीय है. आलू किसानों की अनदेखी बीेजेपी को भारी पड़ सकती है.

अलीगढ़ लोकसभा सीट

अलीगढ़ लोकसभा सीट पर सीधा मुकाबला गठबंधन और भाजपा के बीच में है. अलीगढ़ में मुसलमानों और दलितों का अच्छा वोटबैंक है. इसके साथ ही जाट मतदाता भी यहां निर्णायक भूमिका में हैं. पिछड़ी और सवर्ण जातियों का भी अच्छा खासा वोट बैंक है. इस लोकसभा में बीजेपी की तरफ से वर्तमान सांसद सतीश कुमार गौतम को दोबारा मौका दिया है. महागठबंधन की तरफ से यहां अजीत बालियान को टिकट दिया गया है. वहीं कांग्रेस ने पूर्व सांसद बिंजेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है.

18 तारीख को हुई वोटिंग में जहां सवर्ण समाज के साथ-साथ थोड़ा बहुत अन्य पिछड़े वर्ग का वोट बीजेपी के साथ जाता दिखाई दिया. वहीं मुस्लिम व दलित मतदाताओं का रुख पूर्ण रूप से गठबंधन के पक्ष में रहा. राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन में होने के कारण जाट समाज ने यहां गठबंधन के पक्ष में बंपर वोट किया है. जिस कारण यहां गठबंधन भाजपा की अपेक्षा अधिक मजबूत है.

यहां पर कांग्रेस व प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ने भी जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया था जो थोड़ा-बहुत महागठबंधन के उम्मीदवार को हानि पहुंचा सकता है.

मथुरा लोकसभा सीट

मथुरा लोकसभा एक हाईप्रोफाइल सीट बनी हुई है क्योंकि यहां बीजेपी की तरफ से हेमा मालिनी को उम्मीदवार बनाया गया है. वहीं गठबंधन में ये सीट राष्ट्रीय लोकदल के खाते में चली गई. लोकदल ने यहां से कुंवर नरेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है जो ठाकुर राज परिवार से आते हैं.

इस लोकसभा सीट में पड़ने वाली माठ विधानसभा से आठ बार के निर्दलीय विधायक श्याम सुंदर शर्मा ने अपना समर्थन गठबंधन को दिया है. वे बृज भूमि के बड़े ब्राह्मण नेता हैं. इस वजह से बीजेपी के कोर वोट बैंक में सेंध लगती दिखाई दे रही है.

18 तारीख को हुए मतदान में जहां शहरी मतदाता व पिछड़े वर्ग की कुछ जातियां बीजेपी के साथ जाती दिखाई दीं, वहीं मुस्लिम और दलित समाज का रुख गठबंधन की तरफ रहा. गठबंधन की तरफ से ठाकुर उम्मीदवार होने के कारण ठाकुर मतदाताओं का फायदा भी गठबंधन को मिलता दिख रहा है.

जाट मतदाताओं को राष्ट्रीय लोकदल का कोर वोट बैंक माना जाता है. जाट मतदाता इस लोकसभा में चार लाख के आस पास हैं. इस चुनाव में जाटों का रुख राष्ट्रीय लोकदल की तरफ रहा है. हेमा मालिनी मथुरा से वर्तमान सांसद थीं लेकिन उनके पिछले सालों में उनकी गैर मौजूदगी से लोगों में उनके खिलाफ रोष है. इस सीट पर टक्कर कांटे की है लेकिन गठबंधन होने के कारण राष्ट्रीय लोकदल का पलड़ा भारी दिख रहा है.

बुलंदशहर लोकसभा सीट

बुलंदशहर लोक सभा सीट पर बीजेपी, गठबंधन और कांग्रेस उम्मीदवारों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है. लेकिन यहां पर सीधा मुकाबला बीजेपी और गठबंधन के बीच ही है. इसकी मुख्य वजह जातीय समीकरण माने जा रहे हैं. बुलंदशहर लोकसभा सीट पर सामान्य जाति 31, एससी 22, ओबीसी 30 और मुस्लिम 16 फीसदी हैं.

18 तारीख को हुए मतदान में सवर्ण वोटर यहां भाजपा के पक्ष में लामबंद दिखाई दिया. इसके साथ ही पिछड़े वर्ग की भी कुछ जातियां जैसे कश्यप, कुम्हार आदि बीजेपी के पक्ष में जाती दिखाई दीं. वहीं मुस्लिम और दलित समाज भी गठबंधन के पक्ष में लामबंद रहा.

राष्ट्रीय लोकदल को गठबंधन में शामिल करने का फायदा इस सीट पर भी देखने को मिला. यहां पर जाट मतदाता बहुत हद तक गठबंधन के पक्ष में जाते दिखाई दिए. मुस्लिम, दलित और जाटों को एक मंच पर लाकर गठबंधन यहां भी भाजपा को कड़ी चुनौती दे रहा है.

आगरा लोकसभा सीट

आगरा लोकसभा से बीजेपी ने वर्तमान सांसद की जगह इस बार एसपी सिंह बघेल को उम्मीदवार बनाया है. एसपी सिंह बघेल के आगे असली चुनौती बीजेपी की स्थानीय गुटबाजी से निजात पाना और वर्तमान सांसद का जो विरोध लोगों में है, उससे भी पार पाना है. गठबंधन की तरफ से यहां मनोज कुमार सोनी को मैदान में के उतारा गया. वहीं प्रीता हरित को कांग्रेस ने अपने टिकट पर मैदान में उतारा है.

18 तारीख को हुए चुनाव में यहां वैश्य, ब्राह्मण और ठाकुर वोट बैंक बीजेपी के पक्ष में जाते हुआ दिखाई दिया. इसके साथ-साथ कुर्मी, कुशवाहा व बघेल समाज का भी वोट भी बीजेपी को गया. वहीं गठबंधन उम्मीदवार के पक्ष में दलित और मुस्लिम मतदाता गोलबंद रहे. साथ ही साथ कुछ पिछड़ी जातियों की वोट भी गठबंधन को जाता हुआ दिखाई दिया.

पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी आगरा आए थे तो उन्होंने पर्यटन, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, यमुना, पेयजल, आलू किसान, आलू चिप्स, सिंचाई, बिजली इत्यादि की बेहतरी की बात करके लोगों का दिल जीत दिया था. लेकिन उन्होंने इन मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं दिया. इस कारण लोग बीजेपी से छिटक रहे हैं.

अमरोहा लोकसभा सीट

अमरोहा में गठबंधन ने कुंवर दानिश अली को अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस ने सचिन चौधरी को टिकट दिया है. यहां पर गठबंधन के उम्मीदवार कुंवर दानिश अली का सीधा मुकाबला वर्तमान सांसद और बीजेपी उम्मीदवार कवर सिंह तंवर से है.

18 तारीख को हुए चुनाव में यहां सवर्ण बिरादरियों के साथ पिछड़ी जातियों का वोट बीजेपी के पक्ष में जाता दिखा. वहीं गठबंधन के उम्मीदवार कुंवर दानिश अली के पक्ष में दलित और मुस्लिम मतदाताओं ने बिना बंटे मतदान किया.

यहां पर जाट समाज का वोट भी अच्छी संख्या में है जो यहां पर तीनों पार्टियों को जाता दिखाई दिया. इस सीट पर कौन जीतेगा, ये बता पाना मुश्किल है.

हाथरस लोकसभा सीट

हाथरस लोकसभा क्षेत्र सुरक्षित है. यहां से अनुसूचित जाति का उम्मीदवार उतारना हर दल की मजबूरी है. अगर यहां के जातीय आंकड़ों पर नजर डालें तो जाटव समाज के वोटों की संख्या सर्वाधिक है.

18 तारीख को हुए चुनाव में हाथरस सीट पर वैश्य, ठाकुर और ब्राह्मण के साथ कुछ पिछड़ी जातियों का रुख बीजेपी की तरफ रहा. गठबंधन के पक्ष में यहां मुस्लिम,दलित और यादव लामबंद रहे. वहीं जाट भी कुछ हद तक गठबंधन के साथ ही रहे. इस सीट पर भाजपा व गठबंधन के बीच जबरदस्त टक्कर देखने को मिलेगी.


प्रसंगवश